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बीजेपी जाति जनगणना के पक्ष में क्यों नहीं? जानिए, इसने क्या दलील दी

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में अमेरिकी दौरे पर भी जाति जनगणना का मुद्दा उठाया था, लेकिन बीजेपी ने इस विचार को खारिज करने के पीछे एक खास वजह बताई है। बीजेपी ने कहा है कि प्रशासनिक, कानूनी और तकनीकी मुद्दों के कारण राष्ट्रीय जनगणना के दौरान जाति सर्वेक्षण करना मुश्किल हो गया है। राहुल गांधी ने कर्नाटक चुनाव के समय भी इसे मुद्दा बनाया था। बिहार में जेडीयू और आरजेडी भी इसको मुद्दा बनाते रहे हैं। दूसरे विपक्षी दल भी जब तब इस तरह की मांग करते रहे हैं।

सामाजिक न्याय की वकालत करती रहीं पार्टियाँ दावा करती रही हैं कि जातियों की संख्या और उनकी स्थिति पता चलने पर नीतियाँ उसी तरह बनाकर उनकी स्थिति में सुधार किया जा सकता है। ये दल अन्य पिछड़े समुदायों के लिए नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में आरक्षण की मात्रा वैज्ञानिक रूप से निर्धारित करने के लिए जाति जनगणना की मांग करते रहे हैं। यह विपक्षी दलों का एक प्रमुख चुनावी मुद्दा रहा है। 

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हाल ही में अमेरिका के छह दिन के दौरे पर गए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने फिर से जाति आधारित जनगणना की अपनी मांग दोहराई थी और बीजेपी और आरएसएस पर भारत के संविधान पर हमला करने का आरोप लगाया था। राहुल ने कहा था, 'जब हम व्यवस्था में थे, तब हमने जातिगत जनगणना कराई थी। जातिगत जनगणना के पीछे का विचार भारतीय समाज का एक्स-रे करना था ताकि यह पता लगाया जा सके कि समाज की सटीक आबादी क्या है, विभिन्न समुदायों और विभिन्न जातियों के कितने लोग हैं। इसलिए आबादी को जाने बिना और कौन कौन है, धन और शक्ति को प्रभावी ढंग से वितरित करना मुश्किल है।'

उन्होंने आगे कहा था, 'और यही कारण है कि हम भाजपा पर जातिगत जनगणना कराने का दबाव बना रहे हैं और वे ऐसा नहीं कर रहे हैं और जब हम सत्ता में आएंगे तो हम ऐसा करेंगे।'

इससे पहले तो बिहार में जेडीयू और आरजेडी की सरकार ने जाति जनगणना शुरू भी कर दिया था, लेकिन पटना हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगा दी है। हाई कोर्ट का फ़ैसला जाति जनगणना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आया था। इस पर बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा था, 'गरीबी, बेरोजगारी हटाने एवं जनकल्याणकारी नीतियाँ बनाने के लिए सरकारों को वैज्ञानिक आँकड़ों की आवश्यकता होती है। इसके लिए ही हमारी सरकार सभी जातियों और वर्गों को सम्मिलित कर जाति आधारित सर्वे करवा रही है।' नीतीश कुमार ने भी कुछ ऐसी ही बात कही थी।
लेकिन हिंदी पट्टी के राज्यों में जाति जनगणना की मांग जोर पकड़ने के साथ, भाजपा पार्टी के ओबीसी मोर्चा द्वारा आयोजित ओबीसी बुद्धिजीवियों की बैठकों में यह बता रही है कि 'जाति जनगणना क्यों नहीं की जा सकती है'।

बीजेपी ओबीसी मोर्चा के अध्यक्ष के लक्ष्मण ने ईटी से कहा, 'जाति जनगणना आयोजित करने में प्रशासनिक, कानूनी और तकनीकी मुद्दे शामिल हैं। कई जातियां हैं जो केंद्रीय ओबीसी सूची में नहीं हैं लेकिन राज्य ओबीसी सूची में हैं। इसके अलावा, कई गैर-ओबीसी जातियां हैं जो ओबीसी में शामिल होना चाहती हैं। इन सभी कारणों से केंद्र के लिए जाति-आधारित जनगणना करना मुश्किल है।' उन्होंने कहा कि नेता बैठकों में इस तरह के तर्क रख रहे हैं।

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रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा कि यूपी में कुछ ब्राह्मण जातियां ओबीसी हैं; इसी तरह बिहार में पूरा वैश्य समुदाय ओबीसी सूची में था। हालाँकि, कई अन्य राज्यों में, वे सामान्य जाति श्रेणी में आते हैं। देश के कुछ हिस्सों में जाट भी ओबीसी सूची में नहीं थे। उन्होंने कहा, 'हम समझाते हैं कि जाति-आधारित जनगणना करने से पहले सभी योग्य जातियों को ओबीसी सूची में शामिल करने के लिए एक विस्तृत अध्ययन की ज़रूरत है। हम उन्हें यह भी बताते हैं कि केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने जाति जनगणना की थी, लेकिन डेटा जारी नहीं किया।'

लक्ष्मण ने कहा कि राज्य सरकारें जाति-आधारित सर्वेक्षण करने के लिए स्वतंत्र हैं। पिछली सिद्धारमैया सरकार ने कर्नाटक में एक सर्वे कराया था लेकिन डेटा का खुलासा नहीं किया गया था। पटना उच्च न्यायालय ने हाल ही में बिहार सरकार द्वारा किए गए इसी तरह के एक सर्वेक्षण पर रोक लगा दी थी।

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क़मर वहीद नक़वी
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