CJI बीआर गवई ने हाल ही में कोर्ट में हुए ‘जूता कांड’ पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि वह उस वक्त हैरान जरूर हुए थे, लेकिन अब ये मामला उनके लिए एक भूला हुआ अध्याय है। जस्टिस भुइयां उनसे सहमत क्यों नहीं हुए?
मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई
सीजेआई बीआर गवई ने सुप्रीम कोर्ट में हुई जूते फेंकने की सनसनीखेज घटना के सामने आने के बाद पहली बार अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा है कि इस घटना से वह हैरान तो थे, लेकिन अब यह उनके लिए एक ‘भूला हुआ अध्याय’ बन चुकी है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश की यह टिप्पणी गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में एक अन्य मामले में सुनवाई के दौरान आई। सीजेआई बीआर गवई और जस्टिस उज्जल भुइयां व विनोद चंद्रन की पीठ वनशक्ति बनाम भारत संघ मामले में न्यायालय के 16 मई, 2025 के फैसले की समीक्षा और संशोधन की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। इसी दौरान सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को जूता कांड वाली घटना का ज़िक्र आया।
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सीजेआई गवई ने इस घटना पर पहली बार खुलकर बात की। सीजेआई ने कहा, ‘मेरे सम्मानित भाई (जस्टिस चंद्रन) और मैं सोमवार को हुई घटना से बेहद हैरान थे... हमारे लिए यह अब एक भूला हुआ अध्याय है।’ उन्होंने आगे जोड़ा कि घटना के समय उन्होंने वकील को निर्देश दिया था, ‘आप इसे नजरअंदाज कर दें। मैं इससे विचलित नहीं हूँ। आप भी विचलित न हों और मामले को आगे बढ़ाएँ।’
जस्टिस उज्ज्वल भुइयां सहमत नहीं
हालाँकि, जस्टिस उज्ज्वल भुइयां सीजेआई की बातों से सहमत नहीं हुए और जूता फेंकने की घटना की निंदा करते हुए इसे न्यायिक संस्था का अपमान बताया। उन्होंने कहा कि इसे कभी नहीं भुलाया जाना चाहिए। बार एंड बेंच की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस उज्ज्वल भुइयां ने कहा, 'इस पर मेरे अपने विचार हैं, इसे कभी नहीं भूलना चाहिए... यह सीजेआई का मामला है। यह मज़ाक की बात नहीं है। उन्होंने (हमले का प्रयास करने वाले वकील ने) इसके बाद कोई माफ़ी नहीं मांगी। यह संस्था का अपमान है।' भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस भुइयां से सहमति जताई। एसजी ने कहा, 'यह अक्षम्य है। यह आपकी महानता और उदारता थी, लेकिन जो हुआ वह पूरी तरह से अक्षम्य था।'
यह घटना 6 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश वाली बेंच के सामने घटी थी, जब सीजेआई गवई जस्टिस विनोद चंद्रन के साथ 'मेंशनिंग आवर्स' के दौरान बैठे हुए थे। मेंशनिंग आवर्स वह समय होता है जब वकील तत्काल सुनवाई के लिए मामलों का ज़िक्र करते हैं। इस दौरान 71 वर्षीय राकेश किशोर नामक एक व्यक्ति ने अचानक अपना जूता फेंक दिया। आरोपी ने खुद को पकड़े जाने पर कहा, ‘मैंने गवई साहब की तरफ फेंका था’। हालाँकि, जूता न तो सीजेआई को लगा और न ही उनकी मेज तक पहुंचा। यह जूता कहीं और गिर गया, जिससे कोई शारीरिक चोट नहीं पहुंची।
घटना के तुरंत बाद सुरक्षा कर्मियों ने राकेश किशोर को हिरासत में ले लिया। लेकिन सीजेआई गवई के व्यक्तिगत हस्तक्षेप पर उसी दिन शाम तक उन्हें रिहा कर दिया गया। सीजेआई ने कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि कोई आपराधिक शिकायत दर्ज न की जाए। सीजेआई ने घटना के बाद द इंडियन एक्सप्रेस से बताया, "मुझे कुछ भी न लगा और न ही मेरी मेज पर। मैंने केवल आवाज सुनी। शायद यह टेबल पर या कहीं और गिरा। मैंने केवल यह सुना कि वह कह रहा था, ‘मैंने गवई साहब की तरफ फेंका था’। शायद जो फेंका वह कहीं और गिर गया था और वह सफाई दे रहा था।"
सीजेआई का यह बयान न केवल उनकी व्यक्तिगत संयम की मिसाल है, बल्कि न्यायपालिका की उस परंपरा को भी मजबूत करता है, जहां बाहरी उत्तेजनाएं न्यायिक प्रक्रिया को प्रभावित न कर सकें।
कानूनी जानकारों का मानना है कि यह बयान एक संदेश है कि सुप्रीम कोर्ट की दीवारें मजबूत हैं और ऐसी घटनाएं न्यायिक गरिमा को कमजोर नहीं कर सकतीं।
पुलिस पूछताछ में राकेश किशोर ने कहा है कि वह हाल में एक मामले में सुनवाई के दौरान सीजेआई की टिप्पणी से नाराज़ थे। यह मामला खजुराहो मंदिर केस से जुड़ा हुआ था। 16 सितंबर को सीजेआई गवई की बेंच ने खजुराहो के जावरी मंदिर पर याचिका की सुनवाई के दौरान कहा था, 'यह शुद्ध पब्लिसिटी इंटरेस्ट लिटिगेशन यानी पीआईएल है। जाइए और खुद देवता से कहिए कि अब कुछ करे। आप कहते हैं कि आप भगवान विष्णु के कट्टर भक्त हैं तो जाइए और प्रार्थना कीजिए।' इस पर जब प्रतिक्रिया हुई तो 18 सितंबर को सीजेआई ने स्पष्ट किया कि उनकी टिप्पणी का गलत अर्थ निकाला गया और वे सभी धर्मों का सम्मान करते हैं। मुख्य न्यायाधीश गवई ने साफ़ किया कि उनकी टिप्पणी इस संदर्भ में थी कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को इसके रखरखाव का अधिकार क्षेत्र है।
इस घटना के बाद बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने किशोर को तत्काल प्रभाव से प्रैक्टिस से निलंबित कर दिया, यह कहते हुए कि उनका आचरण नियमों और अदालत की गरिमा के अनुकूल नहीं था। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने भी वकील राकेश किशोर की अस्थायी सदस्यता रद्द कर दी है।