अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, जस्टिस चंद्रचूड़ ने जस्टिस रोहिंटन नरीमन के साथ इस मामले में शुक्रवार 2 मई को समिति के सदस्यों से मुलाक़ात की थी। ख़बर के मुताबिक़, दोनों न्यायाधीशों ने इस दौरान जाँच प्रक्रिया को लेकर अपनी चिंताओं के बारे में समिति के सदस्यों से बात की। समिति में जस्टिस एसए बोबडे, इंदु मल्होत्रा और इंदिरा बनर्जी शामिल हैं।
2 मई को ही जस्टिस चंद्रचूड़ ने जाँच समिति को पत्र लिखकर कहा कि अगर महिला की अनुपस्थिति में जाँच को आगे बढ़ाया जाता है तो इससे सुप्रीम कोर्ट की छवि को और ज़्यादा नुक़सान होगा।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने पत्र में यह भी सुझाव दिया है कि समिति को या तो महिला के अपने वकील के साथ आने की उसकी माँग मान लेनी चाहिए या जाँच के लिए एमिकस क्यूरी को नियुक्त किया जाना चाहिए। बता दें कि शिकायत करने वाली महिला ने कुछ दिन पहले इस जाँच प्रक्रिया से ख़ुद को अलग कर लिया था। महिला ने कहा था कि उसे समिति से डर लगता है और इसके कामकाज के तौर-तरीक़ों से सहमत नहीं है। इसके बाद जाँच समिति ने उसकी अनुपस्थिति में ही जाँच को आगे बढ़ाने का फ़ैसला किया था।
ख़बरों के मुताबिक़, महिला ने जाँच समिति को एक चिट्ठी लिख कर कहा था कि समिति को ऐसी प्रक्रिया अपनानी चाहिए जो बराबरी पर आधारित हो और निष्पक्षता सुनिश्चित करे।
महिला ने कहा था कि वह जाँच प्रक्रिया से इसलिए हट रही हैं क्योंकि इसके सदस्य यह नहीं समझ पा रहे हैं कि यह कोई साधारण शिकायत नहीं है बल्कि यह देश के मुख्य न्यायाधीश के ख़िलाफ़ यौन उत्पीड़न की शिकायत है।
आरोप लगाने वाली महिला ने समिति में एक ही महिला के होने पर भी आपत्ति जताई थी। जस्टिस रमण के हटने के बाद जस्टिस इन्दु मलहोत्रा को उनकी जगह कमेटी में लाया गया था।
सीजेआई गोगोई ने कहा था, ‘न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बेहद, बेहद, बेहद गंभीर ख़तरा है और यह न्यायपालिका को अस्थिर करने का एक बड़ा षड्यंत्र है।’ सीजेआई ने इन आरोपों को खारिज करते हुए इसे उन्हें कुछ अहम सुनवाइयों से रोकने की साज़िश करार दिया था।
सीजेआई के ख़िलाफ़ हुई साज़िश!
यहाँ यह बताना ज़रूरी होगा कि सर्वोच्च अदालत के वकीलों के संगठन सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड्स असोसिएशन ने माँग की थी कि सीजेआई पर लगे आरोपों की जाँच के लिए एक कमेटी का गठन किया जाए जो आरोपों की निष्पक्ष जाँच करे। दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट के कर्मचारियों के संगठन सुप्रीम कोर्ट इंप्लॉयज़ वेलफ़ेयर असोसिएशन ने मुख्य न्यायाधीश का पक्ष लिया था। संगठन ने एक बयान जारी कर कहा था कि वह इस तरह के मनगढ़ंत, झूठे और बेबुनियाद आरोपों का विरोध करता है, ये आरोप संस्था की छवि को ख़राब करने के लिए लगाए गए हैं।