जबसे ग़ैर-कांग्रेसी सरकार आई है तब से लगभग रोज़ कोई न कोई नया फ़ैसला आ रहा है। हर फ़ैसले के साथ नई आशाएँ, नई अपेक्षाएँ। इस ग़ैर-कांग्रेसी सरकार को हम कुछ भी कहें और उसके फ़ैसलों का अच्छा-बुरा विश्लेषण करते रहें पर यह सच है कि सरकार कुछ न कुछ करती ज़रूर रहती है।
आज 10 बैंक विलय होकर 4 बन गए, कोरोना की तबाही से क्या निपट पाएँगे?
- अर्थतंत्र
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- 1 Apr, 2020

आज पूरे वातावरण में कोरोना वायरस का खौफ फैला हुआ है। आर्थिक मोर्चों पर लिए गए या लिए जा रहे निर्णय भी कभी निराशा तो कभी आशा के झूले में झुलाते रहते हैं। इस बीच 1 अप्रैल को बैंकों का मर्जर भी संपन्न हो गया। इससे क्या बदलेगा?
आज पूरे वातावरण में कोरोना वायरस का खौफ फैला हुआ है। आर्थिक मोर्चों पर लिए गए या लिए जा रहे निर्णय भी कभी निराशा तो कभी आशा के झूले में झुलाते रहते हैं। इस बीच 1 अप्रैल को बैंकों का मर्जर भी संपन्न हो गया। हालाँकि ऐसा होना पहले से तय था। कोई अनहोनी नहीं हुई। मगर फ़ैसला असलियत में तो आज ही बदला है। 10 सरकारी बैंकों को आज से चार बड़े बैंकों में परिवर्तित कर दिया गया है। नोटबंदी के तुरंत बाद 2017 में भी स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया के सहयोगी बैंकों (आनुषंगिक बैंकों) को उसमें मिला दिया गया था। सिद्धांत रूप में यह फ़ैसला भी उसी की अगली कड़ी है।