कर्नाटक की लेखिका बानू मुश्ताक को उनके लघु कहानी संग्रह ‘हार्ट लैंप’ के लिए इंटरनेशनल बुकर प्राइज 2025 से सम्मानित किया गया है । यह पहली बार है जब किसी कन्नड़ लेखक और लघु कहानी संग्रह को यह सम्मान मिला है।

बानू मुश्ताक का जन्म 1948 में कर्नाटक के हासन में एक मुस्लिम परिवार में हुआ। केवल 8 साल की उम्र में, उन्हें शिवमोगा के एक कन्नड़-भाषा मिशनरी स्कूल में दाखिला इस शर्त पर मिला कि वे 6 महीने में कन्नड़ पढ़ना और लिखना सीख लें। बानू ने न केवल इस चुनौती को स्वीकारा बल्कि समय से पहले कन्नड़ में महारत हासिल कर ली। बचपन से ही बानू को लिखने पढ़ने का बहुत शौक था । लेकिन उनके रास्ते में कठिनाइयां भी कम नहीं थीं । बानू ने अपनी पढ़ाई उस दौर में जारी रखी जब मुस्लिम लड़कियों की पढ़ाई को रोक दिया जाता था । बानू ने परिवार और समाज की रूढ़ियों के खिलाफ जाकर ना केवल अपनी शिक्षा जारी रखी बल्कि 26 वर्ष की उम्र में प्रेम विवाह भी किया।

बानू ने वकालत की पढ़ाई पूरी करने के बाद पत्रकारिता जगत में कदम रखा । उन्होंने बेंगलुरु में ऑल इंडिया रेडियो और लंकेश पत्रिके जैसे स्थानीय अखबारों में काम किया। लेकिन जिस काम में उनकी सबसे ज्यादा रुचि थी वो था अपने विचारों को पन्नों पर उतारना । 29 साल की उम्र में, बानू ने अपने अनुभवों को पेशेवर लेखन के रूप में दुनिया के सामने लाना शुरू किया। उनकी कहानियाँ, उपन्यास, निबंध और कविताएँ सामाजिक मुद्दों पर गहरी पकड़ रखती हैं। इसी के साथ उनकी किताब ‘कारी नागरागालू’ पर 2003 में फ़िल्म हसीना भी बनी है। 

बानू केवल लेखिका ही नहीं, बल्कि एक साहसी सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। 1980 के दशक से उन्होंने कर्नाटक में सामाजिक अन्याय के खिलाफ आंदोलनों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना शुरु किया । एक वक्त तो ऐसा आया कि सन् 2000 में जब उन्होंने मस्जिदों में मुस्लिम महिलाओं के प्रवेश के अधिकार की मांग की, तो उन्हें और उनकेपरिवार को तीन महीने के लिए मुस्लिम समाज का बहिष्कार झेलना पड़ा। इसके बावजूद, बानू ने हार नहीं मानी। उन्होंने चिकमगलूर के स्कूलों में मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहनने के अधिकार का भी समर्थन किया। 

अब बात कर लेते हैं बानू की उस किताब की जिसने बानू को अंतर्राष्ट्रीय स्टार बना दिया। हार्ट लैंप बानू की 12 लघु कहानियों का संग्रह है। इस संग्रह को पूरा करने में बानू को 1990 से 2023 तक का समय लगा । कुल मिलाकर इस किताब को लिखने में 30 साल के ज्यादा का समय लगा। इस किताब में दक्षिण भारत में पितृ सत्ता वाले समाज के साथ-साथ मुस्लिम महिलाओं के जीवन की कठिनाइयों का जिक्र किया गया है। इस संग्रह का दीपा भस्ती ने कन्नड़ से अंग्रेजी में अनुवाद किया है । दीपा भस्ती बुकर अवॉर्ड जीतने वाली पहली अनुवादक हैं। दीपा ने न केवल कहानियों का अनुवाद किया, बल्कि संग्रह के लिए कहानियाँ चुनने में भी मदद की। यह पहली बार है जब किसी लघु कहानी संग्रह ने इंटरनेशनल बुकर प्राइज जीता है।

20 मई 2025 को लंदन में आयोजित समारोह में बानू मुश्ताक और दीपा भस्ती को इंटरनेशनल बुकर प्राइज 2025 से सम्मानित कियागया। दोनों ने लगभग 67 हजार डॉलर का पुरस्कार जीता। निर्णायक मंडल के अध्यक्ष मैक्स पोर्टर ने हार्ट लैंप की खूब तारीफ की और कहा कि ये किताब अंग्रेजी पाठकों के लिए कुछ नया लेकर आई है ।  

पुरस्कार की घोषणा से पहले बानू बहुत तनाव में थीं । उन्होंने कहा, “यह अनुभव बहुत अच्छा था। यह मेरे अकेले की जीत नहीं है, बल्कि टीम वर्क की जीत है।” बानू ने अपने जीवन के सफर को याद करते हुए कहा कि, “मैं बैलगाड़ियों में यात्रा करने से लेकर आज इस अतर्राष्ट्रीय मंच पर खड़ी हूँ, लेकिन हमेशा मेरी लेखन शैली यही रहेगी।” 

बानू की इस उपलब्धि पर पूरा देश गर्व कर रहा है।सोशल मीडिया पर लोग उन्हें बधाई दे रहे हैं। यह जीत न केवल बानू और दीपा के साथसाथ भारतीय साहित्य की भी जीत है। बानू मुश्ताक की ‘हार्ट लैंप’ एक ऐसी रोशनी है, जो सामाजिक अंधेरों को खत्म करती है । बानू के सफर से सभी को प्रेरणा मिलती है कि अगर कुछ कर दिखाने का जुनून हो तो कठिनाइयां आपको रोक नहीं सकतीं।