1946 में न्यूयॉर्क में आयोजित संयुक्त राष्ट्र महासभा के पहले अधिवेशन में आज़ादी के दरवाजे पर खड़े भारत के राजनीतिक नेतृत्व ने पूरे विश्व को एक संदेश दिया था। अंतरिम सरकार के उपराष्ट्रपति जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गाँधी के कहने पर भारतीय प्रतिनिधिमंडल की नेता बतौर अधिवेशन में शामिल हुईं विजय लक्ष्मी पंडित ने भारत की नैतिक आभा से दमकते तर्कों से महासभा के दो तिहाई सदस्यों का समर्थन प्राप्त करके भारत की ओर से पेश किया गया पहला प्रस्ताव पारित करा लिया। यह प्रस्ताव दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मूल के लोगों के साथ हो रहे व्यवहार की निंदा से जुड़ा था। ब्रिटेन, अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 2(7) का हवाला देते हुए दक्षिण अफ्रीका के नस्लवादी रवैये पर भारत के इस निंदा प्रस्ताव को पारित होने से रोकने की बहुत कोशिश की जो ‘घरेलू क्षेत्राधिकार’ और ‘संप्रुभता’ को लेकर संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबद्धता से जुड़ा था, लेकिन सफल नहीं हुए।
इतिहास की बड़ी दुर्घटना है भारत की ‘नैतिक आभा’ का नष्ट होना!
- विचार
- |
- |
- 17 Jul, 2023

फाइल फोटो
प्रधानमंत्री मोदी की यूरोपीय देश फ्रांस की यात्रा के दौरान ही इसी देश के स्ट्रासबर्ग स्थित यूरोपीय संसद ने मणिपुर हिंसा को लेकर प्रस्ताव पारित क्यों किया? ऐसा करने से भारत रोकने में सफल क्यों नहीं रहा?
भारत की यह उल्लेखनीय उपलब्धि थी तो ‘आज़ाद भारत’ की इस प्रतिबद्धता की मुनादी भी कि ‘राष्ट्रीय संप्रभुता की आड़ में मानवाधिकार उल्लंघन को छिपाया नहीं जा सकता।‘ भारत के इस मानवतावादी दृष्टि को पूरी दुनिया ने सलाम किया। दक्षिण अफ्रीका के एक अख़बार ने लिखा- ‘यह अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र में पश्चिम पर पूर्व की और यूरोपियों पर गैर यूरोपीय की पहली सफलता है!’