1946 में न्यूयॉर्क में आयोजित संयुक्त राष्ट्र महासभा के पहले अधिवेशन में आज़ादी के दरवाजे पर खड़े भारत के राजनीतिक नेतृत्व ने पूरे विश्व को एक संदेश दिया था। अंतरिम सरकार के उपराष्ट्रपति जवाहरलाल नेहरू और महात्मा गाँधी के कहने पर भारतीय प्रतिनिधिमंडल की नेता बतौर अधिवेशन में शामिल हुईं विजय लक्ष्मी पंडित ने भारत की नैतिक आभा से दमकते तर्कों से महासभा के दो तिहाई सदस्यों का समर्थन प्राप्त करके भारत की ओर से पेश किया गया पहला प्रस्ताव पारित करा लिया। यह प्रस्ताव दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मूल के लोगों के साथ हो रहे व्यवहार की निंदा से जुड़ा था। ब्रिटेन, अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 2(7) का हवाला देते हुए दक्षिण अफ्रीका के नस्लवादी रवैये पर भारत के इस निंदा प्रस्ताव को पारित होने से रोकने की बहुत कोशिश की जो ‘घरेलू क्षेत्राधिकार’ और ‘संप्रुभता’ को लेकर संयुक्त राष्ट्र की प्रतिबद्धता से जुड़ा था, लेकिन सफल नहीं हुए।