11 अक्टूबर को लोकनायक जयप्रकाश नारायण की 120वीं जयन्ती है। जयप्रकाश नारायण उन राजनेताओं में रहे हैं, जिन्होंने संसदीय राजनीति में सीधे हस्तक्षेप के बिना उसके चरित्र को बदलने और चुने हुए जन प्रतिनिधियों को जनता के प्रति जवाबदेह बनाने का प्रयत्न किया। कहना चाहिए कि आजादी के बाद महात्मा गांधी की राजनीतिक चेतना का विस्तार और तौर तरीकों का कुल अक्स जयप्रकाश नारायण की राजनीति का निहितार्थ है।

क्या जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि जनता के प्रति अपनी पूरी जवाबदेही निभा पा रहे हैं? यदि जब राजनीति जनता की नज़र में बेपरवाह और पटरी से उतरती नज़र आए तो क्या होना चाहिए? पढ़िए जेपी ने क्या तरकीब सुझायी है।
हालाँकि एक लंबे अरसे तक वे मार्क्सवादी राजनीति के आग़ोश में पलते-बढ़ते हुए सन् 1929 में अमेरिका से भारत लौटे। उस समय तक वे दुनिया भर में उपलब्ध मार्क्सवादी साहित्य का गहरा अध्ययन-अनुभव कर चुके थे। महात्मा गांधी उनके बारे में दावा करते थे कि- समाजवाद के बारे में जो बात जयप्रकाश नारायण नहीं जानते, उसे भारत में और कोई नहीं जानता है। शरुआती दौर में वे मानवेन्द्र नाथ राय के विचारों से भी प्रभावित लगते हैं। पर बाद में जैसे मानवेन्द्र नाथ राय के विचारों में जो बदलाव आया, वैसा ही बदलाव जयप्रकाश नारायण के विचारों में भी दृष्टिगोचर होता है।