भारत चाँद पर पहुँचने वाला है। गौरव के इस क्षण में मेरी नज़र चाँद पर भी है और ज़मीन पर भी, जहाँ चाँद से भी ज़्यादा गहरे गड्ढे हैं। दुनियाभर में सूरज की आग में जलते लोकतंत्र को चाँद की ठंडक चाहिए। यह ठंडक आएगी सूचनाओं की पवित्रता और साहसिकता से, न कि नेताओं की ऊँची आवाज़ से। सूचना जितनी पवित्र होगी, नागरिकों के बीच भरोसा उतना ही गहरा होगा। देश सही सूचनाओं से बनता है। फ़ेक न्यूज़, प्रोपेगंडा और झूठे इतिहास से भीड़ बनती है...। यहाँ सिर्फ़ मैं नहीं आया हूँ, मेरे साथ पूरी हिन्दी पत्रकारिता आई है, जिसकी हालत इन दिनों बहुत शर्मनाक है। गणेश शंकर विद्यार्थी और पीर मूनिस मोहम्मद की साहस वाली पत्रकारिता आज डरी-डरी-सी है। उसमें कोई दम नहीं है। अब मैं अपने विषय पर आता हूँ।
मीडिया सिटिज़न के ख़िलाफ़ हो जाए तो सिटिज़न को मीडिया बनना होगा: रवीश
- विचार
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- 6 Sep, 2019

फ़ाइल फ़ोटो
मैं ऐसे किसी दौर या देश को नहीं जानता, जो ख़बरों के बग़ैर धड़क सकता है। किसी भी देश को ज़िंदादिल होने के लिए सूचनाओं की प्रामाणिकता बहुत ज़रूरी है। सूचनाएँ सही और प्रामाणिक नहीं होंगी, तो नागरिकों के बीच का भरोसा कमज़ोर होगा। इसलिए एक बार फिर सिटिज़न जर्नलिज़्म की ज़रूरत तेज़ हो गई है।
नागरिक पत्रकारिता
यह समय नागरिक होने के इम्तिहान का है। नागरिकता को फिर से समझने का है और उसके लिए लड़ने का है। यह जानते हुए कि इस समय नागरिकता पर चौतरफ़ा हमला हो रहे हैं और सत्ता की निगरानी बढ़ती जा रही है, एक व्यक्ति और एक समूह के तौर पर जो इस हमले से ख़ुद को बचा लेगा और इस लड़ाई में मांज लेगा, वही नागरिक भविष्य के बेहतर समाज और सरकार की नई बुनियाद रखेगा। दुनिया ऐसे नागरिकों की ज़िद से भरी हुई है। नफ़रत के माहौल और सूचनाओं के सूखे में कोई है, जो इस रेगिस्तान में कैक्टस के फूल की तरह खिला हुआ है। रेत में खड़ा पेड़ कभी यह नहीं सोचता कि उसके यहाँ होने का क्या मतलब है, वह दूसरों के लिए खड़ा होता है, ताकि पता चले कि रेत में भी हरियाली होती है। जहाँ कहीं भी लोकतंत्र हरे-भरे मैदान से रेगिस्तान में सबवर्ट किया जा रहा है, वहाँ आज नागरिक होने और सूचना पर उसके अधिकारी होने की लड़ाई थोड़ी मुश्किल ज़रूर हो गई है। मगर असंभव नहीं है।
रवीश कुमार एनडीटीवी में वरिष्ठ पत्रकार हैं। वह देश-दुनिया से जुड़े विषयों पर अपनी बेबाक राय के लिए जाने जाते हैं।