तमिलनाडु में 35 साल बाद ऐसा पहली बार होगा जब राजनीति की दो बड़ी शख़्सियतों की ग़ैरमौजूदगी में लोकसभा का चुनाव होगा। करुणानिधि और ‘अम्मा’ के नाम से मशहूर रहीं जयललिता की ग़ैरमौजूदगी में यह पहला बड़ा चुनाव है। इसलिए यह बड़ा सवाल है कि इन दो बड़े नेताओं की विरासत को कौन और कैसे आगे बढ़ाएगा?
तमिलनाडु में विरासत पर कब्ज़े की राजनीतिक जंग
- तमिलनाडु
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- 18 Jan, 2019

करुणानिधि और जयललिता की ग़ैरमौजूदगी में यह पहला बड़ा चुनाव है। तमिलनाडु की राजनीति में यह सवाल अहम है कि इन दो बड़े नेताओं की विरासत को कौन और कैसे आगे बढ़ाएगा?
करुणानिधि की विरासत स्टालिन के हाथ
जहाँ तक बात करुणानिधि की है, उन्होंने अपने जीते जी ही बेटे स्टालिन को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी घोषित कर दिया था। करुणानिधि जब पिछली बार मुख्यमंत्री थे तब स्टालिन उपमुख्यमंत्री थे। करुणानिधि ने स्टालिन को डीएमके का कार्यकारी अध्यक्ष भी बना दिया था। करुणानिधि के बड़े बेटे अलगिरि ने स्टालिन का नेतृत्व स्वीकार करने से इनकार कर दिया था। लेकिन अलगिरी को दूसरे सभी पार्टी नेताओं ने दरकिनार कर दिया और स्टालिन को ही अपना नेता माना।
बात जयललिता की विरासत की करें, तो कई सवाल हैं। एआईएडीएमके में कोई ऐसा नेता नहीं दिखाई देता जो उनकी लोकप्रियता और करिश्मे के क़रीब भी पहुँचता हो। जयललिता अविवाहित थीं और उन्होंने अपने जीवनकाल में अपने राजनीतिक वारिस के बारे में कभी कोई घोषणा नहीं की। बीमार होने के बाद अस्पताल में भर्ती कराए जाने पर उनके वफ़ादार पन्नीरसेल्वम को केयरटेकर मुख्यमंत्री बना दिया गया था।