आरक्षण पर तब एक बार फिर से बहस शुरू हो गई जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह राज्य सरकारों का अपना फ़ैसला है और इसमें कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकता। विपक्षी दलों के साथ ही दलित राजनीति से जुड़े सरकार में शामिल नेताओं ने भी विरोध किया। उन्होंने सरकार, बीजेपी और संघ को निशाने पर क्यों लिया? क्या आरक्षण को ख़त्म किया जा रहा है और कौन कर रहा है यह सब? देखिए शीतल के सवाल में वरिष्ठ पत्रकार शैलेश और आशुतोष की चर्चा।
आज स्टूडियो में कई मेहमान मौजूद थे और एक टीम भी जिसने पिछले डेढ़ महीने तक लगातार दिल्ली विधानसभा का चुनाव सर्वेक्षण किया था। इन सब लोगों ने कल होने वाले मतदान की प्रकृति के बारे में अपनी-अपनी राय रखी। अब 11 तारीख़ को मतगणना होगी तब पता चलेगा कि किसकी राय नतीजों के बहुत क़रीब थी। 'दिल्ली किसकी' में शीतल पी सिंह ने इन मेहमानों से बातचीत की।
तीन दिन से इस अफवाह को बहुत तगड़ी हवा दी गई कि नई दिल्ली सीट पर ख़ुद केजरीवाल मुश्किल में फँस गए हैं। सत्य हिंदी ने नई दिल्ली विधानसभा सीट का कल विस्तार से पुनरीक्षण किया और पाया कि यह नितांत चुनावी अफवाह भर है। सच्चाई यह है कि एक हत्याकांड के चलते बीजेपी उम्मीदवार को इस सीट के गुर्जर मतदाताओं का कड़ा विरोध झेलना पड़ रहा है। 'दिल्ली किसकी' में देखिए शीतल पी सिंह का विश्लेषण।
दिल्ली में हर तीसरे महीने सफ़ाई कर्मचारी हड़ताल पर चले जाते हैं। पूरी दिल्ली में कूड़े के ढेर लग जाते हैं। मामला हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट पहुँचता है तब जाकर कूड़े के ढेर हटते हैं। एमसीडी और केजरीवाल सरकार के बीच आरोप-प्रत्यारोप मीडिया की ख़बर बनते हैं। इतने गंभीर मुद्दे पर इस चुनाव में कोई बात न हो सकी। 'दिल्ली किसकी' में देखिए शीतल पी सिंह का विश्लेषण।
मित शाह को लगता है कि बीजेपी दिल्ली की 70 में से 45 सीटें जीतने जा रही है। उन्हें लगता है कि सांगठनिक कमज़ोरी के चलते और पिछली बार की तरह देश व्यापी कार्यकर्ताओं के इस बार दिल्ली न पहुँचने के चलते आप बीजेपी की सामर्थ्य का मुक़ाबला नहीं कर पाएगी। देखिए 'दिल्ली किसकी' में शीतल पी सिंह का विश्लेषण।
अब चुनाव प्रचार में सिर्फ़ पाँच दिन बचे हैं और अभी तक राहुल गाँधी के दिल्ली चुनाव में प्रचार अभियान के बारे में अनिश्चितता बनी हुई है। हालाँकि बीजेपी ने आज योगी आदित्यनाथ को तीन दिन तक लगातार चुनाव सभाएँ करने के लिए उतार दिया है। देखिए 'दिल्ली किसकी' में कांग्रेस की हालत पर शीतल पी सिंह का विश्लेषण।
दिल्ली में कुल 70 में से 12 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। अपने जन्म से ही 2013 के पहले चुनाव में ही 'आप' ने इन पर झंडा गाड़ दिया था और 2015 में तो उसने इन सारी सीटों को बहुत बड़े अंतर से जीता था। इस बार क्या हो सकता है, 'दिल्ली किसकी' में बता रहे हैं शीतल पी सिंह।
हिंदी के वरिष्ठ पत्रकारों की राय में बीजेपी दिल्ली के चुनाव में हार की ओर है और इस पराजय से बचने के लिए किसी भी किस्म की मर्यादा के पालन को वह तैयार नहीं है। चुनाव आयोग 'केंचुआ' साबित हुआ है और प्रशासनिक संस्थाएँ नाकारा। देखिए शीतल पी सिंह की वरिष्ठ पत्रकारों- शैलैश, उर्मिलेश, आशुतोष, मुकेश कुमार और वीरेंद्र सेंगर की चर्चा।
दिल्ली में 5 सीटें ऐसी है जो मुसलिम बाहुल्य हैं।पहले इनपर कांग्रेस का कब्ज़ा रहता था पर पिछले चुनाव में उलट फेर हो गया। आम आदमी पार्टी ने इन 5 में से 4 सीटें जीती और बीजेपी ने 1 सीट, कांग्रेस सारी सीटें हार गयी। इस चुनाव में मुसलमान किस ओर जाएँगे, इसका विश्लेषण कर रहे हैं शीतल पी सिंह।
2015 में बीजेपी कुल 70 सीटों में से 3 सीटें ही जीत पाई थी और कांग्रेस शून्य पर थी। सत्य हिंदी के लिए शैलेंद्र ने इन क्षेत्रों में कई दिनों तक मतदाताओं की नब्ज़ टटोली। उनकी फ़ील्ड रिपोर्ट पर आधारित शीतल पी सिंह का विश्लेषण देखिए 'दिल्ली किसकी' में।
दिल्ली में सातवीं बार विधानसभा के गठन के लिए चुनाव हो रहे हैं। बीजेपी एक बार, कांग्रेस तीन बार और आप दो बार दिल्ली की गद्दी पर बैठ चुकी हैं। केजरीवाल अपने काम पर और बीजेपी शाहीन बाग़ के ख़िलाफ़ वोट माँग रही है। देखिए दिल्ली का मूड, शीतल पी सिंह की विशेष रिपोर्ट 'दिल्ली किसकी' में।
संसदीय कार्य मंत्री (राज्य) अर्जुन मेघवाल ने राज्य सरकारों को सीएए के मसले पर चेतावनी दी है। उन्होंने कहा है कि राज्य इसे लागू करने से इनकार नहीं कर सकते। ऐसा तब है जब केरल ने विधानसभा में प्रस्ताव पास किया है और सुप्रीम कोर्ट में इसे चुनौती दी है। लगभग सारी विपक्षी राज्य सरकारें इसके ख़िलाफ़ हैं। इस नयी समस्या पर सवाल उठा रहे हैं शीतल पी सिंह।
जेएनयू में हिंसा हुई। दर्जनों नकाबपोशों द्वारा। तेज़ाब, लाठी, लोहे की रॉड के साथ होस्टल में घुस कर निहत्थे छात्रों और अध्यापकों पर हमला किया गया। तीन घंटे तक। क्या विश्वविद्यालय प्रशासन, पुलिस, केन्द्रीय सरकार की शह के बिना यह संभव है? क्या इस हिंसा के लिए साज़िश रची गई। देखिए वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष और शीतल पी सिंह की चर्चा।
गृह मंत्री अमित शाह के ज़ोर देकर यह बोलने के बाद कि पहले वह नागरिकता क़ानून में संशोधन करेंगे और उसके बाद पूरे देश में एनआरसी लागू करेंगे, यह विवाद बढ़ा।