यह बात बार-बार साबित हो रही है कि अमेरिका हथियारों का सबसे बड़ा निर्माता और बेचने वाला है। उसके हथियार भारत से लेकर फिलिस्तीन तक मिल जाते हैं। यूएन, इजराइल और अमेरिका द्वारा आतंकी घोषित हमास से लेकर तालिबानी आतंकियों के पास यूएस निर्मित हथियार मिल रहे हैं। यह जुमला शायद ऐसे ही हालात के लिए कहा गया होगा- युद्ध एक धंधा है।
हमास ने इजराइल पर हमलों का, नरसंहार के वीडियो जारी किए हैं। इजराइल ने भी हमास के हमलों के भयावह वीडियो जारी किए हैं।
अमेरिकी सीनेटर मार्जोरी टेलर ग्रीन ने एक्स (ट्विटर) पर लिखा है कि हमास ने इजराइल पर हमले के लिए अमेरिकी हथियारों का इस्तेमाल किया। रिपब्लिकन सदस्य ग्रीन ने हमास द्वारा इस्तेमाल किए गए हथियारों के स्रोत की गहन जांच की मांग की है।
मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक कश्मीरी आतंकी संगठनों के पास से भी अमेरिकी हथियार बरामद होते रहे हैं। संयोग से भारत और इजराइल दोनों ही अमेरिका के बहुत गहरे दोस्त हैं। लेकिन सवाल यही है कि अमेरिका में निर्मित हथियार जैश-ए-मुहम्मद, पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा और फिलिस्तीनी में हमास जैसे आतंकी संगठनों के हाथों में कैसे पहुंच रहे हैं?
जंग एक बड़ा कारोबार है, लेकिन यह अब एक खूनी धंधा है। जंग के दौरान दुनिया भर में हजारों मौतें होती हैं। यह हमने यूक्रेन में देखा, यह हम इजराइल और ग़ज़ा में देख रहे हैं। हथियारों का सबसे बड़ा सौदागर यूएसए इस बड़े धंधे के केंद्र में है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (सिपरी) की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2013-17 और 2018-22 के बीच अमेरिका निर्मित हथियारों के निर्यात में 14 पीसदी की बढ़ोतरी हुई और 2018-22 की अवधि में ग्लोबल हथियारों के निर्यात में इसकी हिस्सेदारी 40 प्रतिशत थी। यह रिपोर्ट मार्च 2023 की है।
फरवरी 2020 में, तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रम्प ने तालिबान के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसमें तय पाया गया कि मई 2021 तक अफगानिस्तान से सभी विदेशी सैनिक वापस चले जाएंगे। ट्रम्प के उत्तराधिकारी, राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भी इस समझौते से प्रतिबद्धता जताई, लेकिन विदेशी सैनिकों के वापसी की समय सीमा 31 अगस्त तक बढ़ा दी।
इस तथ्य को गहराई से समझने की जरूरत है। विदेशी सैनिकों की वापसी के बाद तालिबान मिलिशिया ने अफगानिस्तान के अधिकांश हिस्सों पर कब्जा कर लिया। युद्धग्रस्त अफगानिस्तान छोड़ने की जल्दी में, अमेरिकी सैनिक 7 अरब डॉलर से अधिक के हथियार और रक्षा उपकरण वहीं छोड़ गए या जानबूझकर छोड़े गए। वो हथियार तालिबान के हाथों में चले गए।
अमेरिकी रक्षा विभाग ने अगस्त 2022 में अपनी रिपोर्ट में कहा था- " अफगानिस्तान में जब चुनी हुई सरकार गिरी तो उसके पास 7.12 अरब डॉलर के अमेरिकी हथियार थे। अधिकांश हथियारों को तालिबान ने जब्त कर लिया था।" इनमें सैन्य विमान, जमीनी युद्ध वाहन, हथियार और अन्य सैन्य उपकरण थे। इसमें ब्लैक हॉक्स और अन्य हेलीकॉप्टर, यूएस ह्यूमवीज़ और स्कैनईगल सैन्य ड्रोन भी शामिल थे। इसमें एम16 असॉल्ट राइफल और एम4 कार्बाइन जैसे अत्याधुनिक हथियार थे, जो भारत विरोधी और इजराइल विरोधी ताकतों के साथ पहुंच गए। वही हथियार अब इन दोनों देशों के खिलाफ इस्तेमाल हो रहे हैं।
पिछले साल रायसीना डायलॉग के दौरान, तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने कहा था कि जम्मू कश्मीर में विदेशी हथियारों और अन्य सैन्य उपकरणों की वृद्धि देखी जा रही है। ये वही हथियार थे जो अफगानिस्तान में जब्त किए गए थे। कश्मीर घाटी में सक्रिय पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों को अफगानिस्तान में अमेरिकी नेतृत्व वाले नाटो सैनिकों द्वारा छोड़ी गई स्टील-कोर बुलेट और नाइट-विज़न ग्लासों का इस्तेमाल करते हुए पाया गया। भारतीय सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ों में ऐसी अमेरिकी बुलेट का इस्तेमाल किया गया था, जिन्होंने सैनिकों के बुलेटप्रूफ जैकेट तक को तोड़ दिया था। यानी बुलेटप्रूफ जैकेट भी नाकाम रही थी।
जनवरी में, एनबीसी न्यूज ने भारतीय अधिकारियों के हवाले से रिपोर्ट दी थी कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी एम4, एम16 और अन्य अमेरिकी निर्मित हथियारों और गोला-बारूद से लैस थे। अधिकारियों ने एनबीसी न्यूज को बताया कि ऐसा लगता है कि अफगानिस्तान से अमेरिका के जल्दबाजी में बाहर निकलने के दौरान हथियार वहां छूट गए थे जो तालिबान के हाथों में पड़ गए।