शशि थरूर, सलमान खुर्शीद मनीष तिवारी के बयान कांग्रेस की आधिकारिक लाइन से अलग क्यों हैं? क्या यह वैचारिक विविधता है या नेतृत्व पर सवाल? जानिए अंदरूनी असहमति की वजहें।
कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता शशि थरूर और सलमान खुर्शीद के बयानों ने हाल के दिनों में भारतीय राजनीति में एक नया तूफ़ान खड़ा कर दिया है। दोनों नेताओं ने राष्ट्रीय हित और अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दों पर पार्टी लाइन से हटकर बयान दिए, जिससे पार्टी के भीतर और बाहर तीखी प्रतिक्रियाएँ हुईं। शशि थरूर ने हाल ही में कहा, 'जो लोग राष्ट्रीय हित में काम करने को पार्टी-विरोधी गतिविधि समझते हैं, उन्हें खुद से सवाल करना चाहिए।' वहीं, सलमान खुर्शीद ने अनुच्छेद 370 के रद्द किए जाने को जम्मू-कश्मीर के लिए सकारात्मक क़दम बताया। आखिर क्यों कांग्रेस के ये दिग्गज नेता अपनी पार्टी की आधिकारिक लाइन से अलग हटकर बोल रहे हैं? उनके बयानों के पीछे क्या कारण हैं, और यह पार्टी की एकता और रणनीति पर क्या प्रभाव डाल सकता है?
इन सवालों के जवाब से पहले यह जान लें कि आख़िर इन नेताओं ने कैसे-कैसे बयान दिए हैं। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर ने हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर राष्ट्रीय हित और आतंकवाद-विरोधी नीतियों को लेकर पार्टी लाइन से हटकर बयान दिए हैं।
राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता
शशि थरूर ने अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडल के दौरे पर कहा है, 'जो लोग राष्ट्रीय हित में काम करने को पार्टी-विरोधी गतिविधि समझते हैं, उन्हें खुद से सवाल करना चाहिए।' यह बयान कांग्रेस की आधिकारिक नीति से अलग था, जो सरकार की विदेश नीति और आतंकवाद-विरोधी कार्रवाइयों पर सवाल उठाता रहा है। थरूर ने साफ़ किया है कि राष्ट्रीय हित और भारत की वैश्विक छवि को मज़बूत करना किसी भी राजनेता का प्राथमिक कर्तव्य है।
ऑपरेशन सिंदूर का समर्थन
थरूर ने ऑपरेशन सिंदूर का अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन किया। उन्होंने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ भारत की कार्रवाइयां वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए जरूरी हैं।
ऑपरेशन सिंदूर पर थरूर का समर्थन कांग्रेस की उस राय से हटकर है, जिसमें पार्टी ने सरकार की सैन्य कार्रवाइयों को लेकर लगातार कई सवाल उठाए हैं और बीजेपी पर सेना की उपलब्धि का राजनीतिक लाभ उठाने का आरोप लगाया है।
पाकिस्तान की आलोचना
एक अंतरराष्ट्रीय मंच पर थरूर ने पाकिस्तान को आतंकवाद का समर्थक देश करार देते हुए कहा, 'पाकिस्तान की नीतियों ने क्षेत्रीय अस्थिरता को बढ़ावा दिया है। भारत का आतंकवाद के ख़िलाफ़ कड़ा रुख पूरी तरह उचित है।' यह बयान भारत की विदेश नीति का समर्थन करता है, जो कांग्रेस की आधिकारिक लाइन से अलग है, क्योंकि पार्टी ने मोदी सरकार की विदेश नीति पर सवाल उठाए हैं।
भारत की वैश्विक छवि पर जोर
थरूर ने एक विदेशी मंच पर कहा, 'भारत को अपनी वैश्विक छवि को मजबूत करने के लिए एकजुट होकर बोलना होगा। यह समय दलीय राजनीति से ऊपर उठने का है।' यह बयान कांग्रेस के कुछ नेताओं के उस आलोचनात्मक रुख से अलग था जो सरकार की नीतियों को लगातार निशाना बनाते हैं।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने हाल ही में सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के हिस्से के रूप में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ऐसे बयान दिए हैं, जो कांग्रेस की आधिकारिक नीति से हटकर हैं।
अनुच्छेद 370 पर समर्थन
सलमान खुर्शीद ने इंडोनेशिया के जकार्ता में एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के दौरान अनुच्छेद 370 के निरस्तीकरण को जम्मू-कश्मीर के लिए सकारात्मक कदम बताया। उन्होंने कहा कि यह निर्णय क्षेत्र में स्थिरता और विकास के लिए लाभकारी रहा है। यह बयान कांग्रेस की आधिकारिक लाइन से अलग है, जो अनुच्छेद 370 को हटाने की आलोचना करती रही है।
ऑपरेशन सिंदूर की तारीफ़
खुर्शीद ने ऑपरेशन सिंदूर की सफलता की सराहना की। उन्होंने कहा कि इस ऑपरेशन ने पाकिस्तान को क्षेत्रीय शांति के लिए अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया। इसके बाद सीजफायर प्रस्ताव सामने आया। यह बयान सरकार की नीतियों का समर्थन करता है, जबकि कांग्रेस लगातार सीजफायर को लेकर सवाल उठाती रही है।
देशभक्ति पर सवाल
ऑपरेशन सिंदूर के वैश्विक आउटरीच मिशन के दौरान खुर्शीद ने कहा, 'जब हम आतंकवाद के खिलाफ भारत का संदेश दुनिया तक ले जा रहे हैं, तो यह दुखद है कि घर में लोग राजनीतिक निष्ठाओं का हिसाब लगा रहे हैं। क्या देशभक्त होना इतना मुश्किल है?' यह बयान कांग्रेस के उन नेताओं पर तंज था, जो उनके रुख को पार्टी-विरोधी मान रहे थे।
मध्यस्थता का विरोध
खुर्शीद ने साफ़ किया कि भारत और पाकिस्तान के बीच किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने कहा कि यह मुद्दा द्विपक्षीय है और इसे भारत की शर्तों पर हल किया जाना चाहिए। यह बयान कांग्रेस के कुछ नेताओं के उस रुख से अलग है, जो मध्यस्थता के दावों को लेकर सरकार को घेर रहे हैं।
कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मंचों पर राष्ट्रीय हितों और आतंकवाद-विरोधी नीतियों को लेकर पार्टी लाइन से हटकर कई बयान दिए हैं।
मध्यस्थता पर रुख
मिस्र के काहिरा में एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के हिस्से के रूप में मनीष तिवारी ने कहा, 'ऐसा देश जो अमेरिका के नेतृत्व में आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई से पैसा ले सकता है और उसी समय ओसामा बिन लादेन जैसे आतंकवादी को शरण दे सकता है, वह पाकिस्तान के दोहरे चरित्र को दिखाता है।' तिवारी ने काहिरा में कहा, 'भारत और पाकिस्तान के बीच किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की कोई गुंजाइश नहीं है।' जबकि कांग्रेस लगातार बीजेपी को इस मुद्दे पर घेरती रही है और यह साफ़ करने की मांग करती रही है कि वह ट्रंप के दावों पर चुप क्यों है।
पार्टी लाइन से हटने के कारण
कांग्रेस नेताओं के इस रुख में बदलाव के कई संभावित कारण हो सकते हैं। शशि थरूर और सलमान खुर्शीद जैसे नेता राष्ट्रीय हित पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने भारत की छवि को मज़बूत करने के लिए बयान दे रहे हैं। ये सरकार की नीतियों के समर्थन में नज़र आते हैं। थरूर और खुर्शीद का मानना है कि आतंकवाद-विरोधी क़दमों और अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दों पर भारत का पक्ष मज़बूती से रखना ज़रूरी है, भले ही यह पार्टी की आधिकारिक नीति से मेल न खाए।
इसके अलावा कांग्रेस के भीतर राहुल गांधी के नेतृत्व पर पहले से ही सवाल उठ रहे हैं। ऑपरेशन सिंदूर और अनुच्छेद 370 जैसे मुद्दों पर पार्टी का रुख कुछ नेताओं को असहज कर रहा है।
अपनी स्वतंत्र सोच रखने के लिए पहचाने जाने वाले थरूर, खुर्शीद और तिवारी जैसे नेता, पार्टी की रणनीति से असहमत नज़र आ रहे हैं। यह असहमति पार्टी के भीतर एक बड़े वैचारिक विभाजन का संकेत देती है।
कांग्रेस के लिए चुनौतियां
इन बयानों ने कांग्रेस के लिए कई चुनौतियां खड़ी की हैं। थरूर, खुर्शीद और तिवारी जैसे नेताओं के बयानों ने पार्टी के भीतर असहमति को उजागर किया है। यह राहुल गांधी के नेतृत्व पर सवाल उठा रहा है और पार्टी की एकजुट छवि को नुक़सान पहुँचा सकता है। हालाँकि, कांग्रेस का अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे हैं, लेकिन माना जाता है कि राहुल की फ़ैसले लेने में भूमिका अहम है।
बीजेपी ने इन बयानों को कांग्रेस की कमजोरी के रूप में पेश किया है। बीजेपी नेताओं का कहना है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी पार्टी की नीतियों से सहमत नहीं हैं, जिससे पार्टी की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं।
कांग्रेस के लिए यह तय करना मुश्किल हो रहा है कि वह राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता दे या अपनी विपक्षी भूमिका को। यदि पार्टी अपने नेताओं पर कार्रवाई करती है तो उसे देश-विरोधी छवि का ख़तरा है। यदि वह चुप रहती है, तो यह आंतरिक कमजोरी को दिखाता है।
शशि थरूर और सलमान खुर्शीद के बयान कांग्रेस के लिए एक वैचारिक और रणनीतिक संकट का संकेत हैं। ये नेता राष्ट्रीय हित को प्राथमिकता देकर अपनी स्वतंत्र सोच और वैश्विक छवि को मज़बूत कर रहे हैं, लेकिन यह पार्टी की एकता को चुनौती दे रहा है। कांग्रेस को अब यह तय करना होगा कि वह इन बयानों को कैसे संभाले। क्या वह अपने नेताओं को राष्ट्रीय हित में बोलने की आजादी देगी, या पार्टी लाइन का पालन कराने के लिए सख्त कदम उठाएगी?