क्या सीबीआई निदेशक को नियुक्त करने और हटाने वाले पैनल ने मोदी सरकार के दबाव में आलोक वर्मा को दुबारा हटाया? आज यह सनसनीख़ेज़ सवाल उस वक़्त खड़ा हो गया जब सीबीआई मामलों की जाँच के लिए नियुक्त सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज ए. के. पटनायक ने कहा कि आलोक वर्मा के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोप सही नहीं पाए गए थे। उनके इस बयान ने प्रधानमंत्री मोदी और पूरी सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर दिए और यह आरोप सही लगने लगा है कि आलोक वर्मा को जानबूझकर बलि का बकरा बनाया गया है। और जानबूझकर आलोक वर्मा की ईमानदारी को कठघरे में खड़ा किया गया। ऐसे में यह भी सवाल खड़ा होगा कि आख़िर मोदी सरकार क्या किसी को बचा रही है? कौन है यह आदमी और कितना बड़ा है?

क्या चयन समिति ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को प्रधानमंत्री के दबाव में हटाया, क्या उनके ख़िलाफ़ कोई सबूत नहीं था, क्या जस्टिस ए. के. सीकरी से चूक हुई?
पत्रकारिता में एक लंबी पारी और राजनीति में 20-20 खेलने के बाद आशुतोष पिछले दिनों पत्रकारिता में लौट आए हैं। समाचार पत्रों में लिखी उनकी टिप्पणियाँ 'मुखौटे का राजधर्म' नामक संग्रह से प्रकाशित हो चुका है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों में अन्ना आंदोलन पर भी लिखी एक किताब भी है।