महान फ़िल्मकार सत्यजीत रे कहते थे, “जब मैं सिनेमा के लिए मूल कहानी लिखता हूँ, तब मैं उन लोगों के बारे में लिखता हूँ जिन्हें मैं पहले से जानता हूँ और उनकी परिस्थितियों से परिचित हूँ”। सत्यजीत रे हों, मृणाल सेन हों या फिर ईरानी फ़िल्मकार माजिद मजीदी। सिनेमा में कंटेंट और कहानी की ज़रूरतों पर सबने बात की। लेकिन भारतीय फ़िल्म जगत ने सेंसिटिव और कालजयी फ़िल्मकारों की इन ज़रूरी नसीहतों को ज़्यादातर लोगों ने या तो एक कान से सुनकर से दूसरे कान से निकाल दिया या फिर पूरी तरह से नज़रअंदाज किया। नतीजा निकला…अंट-शंट, अनाप-शनाप कहानियों और कंटेंट की बाढ़, जिसका न तो भारतीय परिप्रेक्ष्य से मतलब था न दर्शकों से किसी तरह का परिचय।
कहानी और कंटेंट की हुई वापसी
भारी-भरकम प्रचार तंत्र के ज़रिए इन फ़िल्मों को दर्शकों के दिमाग में ठूँसने की कोशिशें की गईं, जिनका कुल हासिल दो-तीन घंटे के मनोरंजन (ज़्यादातर बार वह भी नहीं) के अलावा कुछ भी नहीं था। लेकिन इक्कीसवीं सदी के बालिग हो रहे साल 2018 ने घुटनों के बल घिसट रहे सिनेमा के मूल तत्व कहानी और कंटेंट को वापस मैदान में लाकर खड़ा कर दिया है। एंटरटेनमेंट की मसालेदार भारतीय परिभाषा गढ़ने वाले निर्माताओं, निर्देशकों और वितरकों ने भले ही अब तक दर्शकों को बिना कंटेंट और कहानी की बे सिर-पैर पिक्चर्स परोसकर चाँदी कूटी। लेकिन अब सिने उद्योग के ‘सौदागरों’ के लिए ख़तरे की घंटी बज चुकी है।
एंटरटेनमेंट की मसालेदार भारतीय परिभाषा गढ़ने वालों ने अब तक भले ही बिना कंटेंट और कहानी की फ़िल्में दिखाकर पैसा कमा लिया हो लेकिन अब फ़िल्म उद्योग के ‘सौदागरों’ के लिए ख़तरे की घंटी बज चुकी है।
2018 के पंचरत्न
1. राज़ी
इंडियन सिनेमा का सीरियस ‘यू टर्न’ मई के महीने में रिलीज़ हुई मेघना गुलजार की फ़िल्म 'राज़ी' से नज़र आया। जासूस कश्मीरी लड़की सहमत की भूमिका ने न सिर्फ़़ आलिया भट्ट को स्टारडम दिया बल्कि बॉक्स ऑफ़िस पर भी इस फ़िल्म को अभूतपूर्व सफलता मिली।
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2. स्त्री
बॉक्स ऑफ़िस पर डर पहले भी बिका है, मगर ‘स्त्री’ का डर खालिस देसी था, जिसे सटायर के अंदाज़ में पेश किया जाना दर्शकों को डराने के साथ गुदगुदा भी गया। बॉक्स ऑफ़िस पर नोट भी बरसे, साथ ही मुख्य भूमिका निभा रहे राजकुमार राव सफलता के सातवें आसमान पर पहुँच गए।
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3. बधाई हो
इस फ़िल्म की कहानी बिल्कुल ऐसी थी जैसी आपने कभी अपने मुहल्ले या फिर पड़ोस में सुन रखी हो। फ़िल्म में दिखाया है कि 50-55 साल के फलाने अंकल-आँटी को बच्चा होने वाला है। भारतीय शैली के फ़ैमिली ड्रामे के कॉमिक अंदाज़ पर दर्शक न सिर्फ़ फ़िदा हुए, बल्कि जमकर बधाईयाँ भी मिलीं। किसी भी कलाकार से ज़्यादा वाहवाही फ़िल्म की कहानी ने लूटी।
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4.अंधाधुन
कॉमिक अंदाज में पेश की गई 'अंधाधुन' जैसी गुदगुदाती थ्रिलर फ़िल्म भारतीय दर्शकों के लिए श्रीराम राघवन का नया तोहफ़ा था। फ़नी सिचुएशन में थ्रिलर सिनेमा के पर्दे पर पहली बार दिखा जिसे लोगों ने हाथों-हाथ लिया। करियर ग्राफ़ बढ़ा आयुष्मान खुराना का, जिन्होंने देखने वाले अंधे की भूमिका निभाकर दर्शकों का दिल जीत लिया।
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5. तुंबाड़
मराठी लोककथा को आधार बनाकर खजाने की तलाश करती फ़िल्म 'तुंबाड़' ने दर्शकों को ख़ूब रोमांचित किया। डर, लालच का मिश्रण बनाकर चलती हुई यह खालिस भारतीय कहानी बीते साल की बड़ी सिने उपलब्धि रही। इस फ़िल्म का बजट कितना था, इस बारे में दावा नहीं किया जा सकता लेकिन इसने बॉक्स ऑफ़िस पर 14 करोड़ की कमाई की।
2018 का सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट?
साल 2018 की शुरुआत से पहले तक सिल्वर स्क्रीन के अजेय स्टार्स ख़ासतौर पर ख़ान तिकड़ी को टक्कर देने की बात सोचना भी बेवक़ूफ़ी लगती थी। वितरक और निर्माता अपनी फ़िल्में ख़ान सितारों के सामने उतारने से भी डरते थे। लेकिन गुजरे साल के आख़िरी छह महीनों में ये सारी बातें बेमानी साबित हो गईं।
जून महीने में आई सुपरस्टार सलमान ख़ान की फ़िल्म 'रेस-3' से बॉक्स ऑफ़िस ने बिना कहानियों के ख़ान अभिनेताओं को जो मुँह चिढ़ाना शुरू किया, वह साल के आख़िरी तक जारी रहा। नवंबर में ‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तान’ लेकर आए मिस्टर परफ़ेक्शनिस्ट आमिर ख़ान भी यक़ीनन अपनी फ़िल्म का हाल देखकर चक्कर खा गए होंगे। ‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तान’ के आने से पहले न सिर्फ़ इस फ़िल्म का शोर था बल्कि फ़िल्मी पंडित पहले से ही इसे हिट का तमगा देने में जुटे थे।
फ्लॉप साबित हुई ‘ज़ीरो’
कंटेंट को लेकर दर्शकों की बढ़ती डिमांड के चक्कर से अमिताभ बच्चन भी नहीं बच सके। उनकी प्रजेंस के बावजूद ‘ठग्स ऑफ हिंदोस्तान’ को बॉक्स ऑफ़िस पर दर्शकों ने ठेंगा दिखा दिया। साल की आख़िरी ख़ान फ़िल्म ‘ज़ीरो’ के साथ भी क्या हुआ, यह हर किसी को मालूम है। शाहरूख ख़ान ने मुश्किल स्क्रिप्ट चुनी, जिसमें मसाला था लेकिन ‘ज़ीरो’ के कंटेंट के साथ दर्शक कनेक्ट नहीं हुए और नतीजा सिफ़र हो गया।
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तकनीक ने भी खाया ‘गच्चा’
हॉलीवुड की उड़ती तकनीकों से इंस्पायर बॉलीवुड मेकर्स को भी इस साल करंट लगा है। शानदार वीएफ़एक्स और तकनीक की बदौलत कुछ भी हासिल करने का दावा करने वाले भी औंधे मुँह गिरे। तकनीक के मामले में सबसे ज़्यादा फ़्लॉप आनंद एल. राय की फ़िल्म ‘ज़ीरो’ साबित हुई। शाहरूख ख़ान को बौना दिखाने के लिए लाखों-करोड़ों रुपये खर्च किए गए, लेकिन यं तकनीकें भी फ़िल्म को बचा नहीं सकीं।
कहानी, कंटेंट से ही हिट होगी फ़िल्म
2018 ने भारतीय सिनेमा को काफ़ी कुछ दिया और शायद लिया भी। साल के आख़िरी दिनों के डूबते सूरज के साथ कंटेंट और कहानी के सिनेमा के बड़े सिपाही महान फ़िल्मकार मृणाल सेन ने अपनी आँखें मूँद लीं। अब भारतीय सिनेमा उद्योग 2019 की नई आहटों के साथ चुस्त-दुरूस्त है क्योंकि उसे ‘सिनेमंत्र’ मिल चुका है। नया सिनेमा, कंटेंट और कहानी के ट्रैक पर दौड़ने के लिए तैयार है क्योंकि वह जानता है कि कहानी और कंटेंट से नज़र हटी तो पिक्चर बॉक्स ऑफ़िस पर पिटी।
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