भारतीय सिनेमा के समृद्ध इतिहास में अगर ऑल टाइम ग्रेट सौ फिल्मों की सूची बनाई जाए तो ‘जाने भी दो यारो’ शुरुआती कुछ फिल्मों में से एक होगी। फिल्म को कल्ट का दर्जा हासिल है। फिल्म अपने बेहतरीन कथानक, शानदार अभिनय उम्दा विषय के लिए जाने जाती है, जो मजाक ह्यूमरस तरीके से समाज की कड़वी सच्चाई को उजागर करती है। कुंदन शाह द्वारा बनाई इस फिल्म की कहानी मुंबई के बड़े विल्डर और वहां के नगर आयुक्त के बीच मिलीभगत को उजागर करने का प्रयास करती है। फिल्म का आखिरी हिस्सा एक नाटक के मंचन का है जहां महाभारत के द्रौपदी के चीर हरण की सीन प्रस्तुत किया जा रहा होता है। वहां कुछ लोग एक लाश को लेकर पहुंच जाते हैं।