कहते हैं कि मीडिया वही दिखाता है जो लोग देखना चाहते हैं और जनप्रतिनिधि वही काम करते हैं जो उनके लिए 'वोटबैंक' तैयार करता है। इस चक्कर में कई बार वे समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी से मुँह मोड़ लेते हैं। यही सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में हुआ। आत्महत्या को हत्या के रूप में पेश करने की कोशिश की गई। यह कोई हवा हवाई बातें नहीं हैं, बल्कि इस पर एक अध्ययन हुआ है कि आख़िर इस मुद्दे को 'हत्या' के रूप में पेश क्यों किया गया। यह अध्ययन मिशिगन यूनिवर्सिटी में एक एसोसिएट प्रोफ़ेसर के नेतृत्व में अध्ययनकर्ताओं की एक टीम ने किया है। अध्ययन में पता चला है कि जो कंटेंट बिल्कुल निराधार हत्या की साज़िश को उछाल रहे थे, उन्हें आत्महत्या के कंटेंट से कहीं ज़्यादा लोगों ने देखा।