कहते हैं कि मीडिया वही दिखाता है जो लोग देखना चाहते हैं और जनप्रतिनिधि वही काम करते हैं जो उनके लिए 'वोटबैंक' तैयार करता है। इस चक्कर में कई बार वे समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी से मुँह मोड़ लेते हैं। यही सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में हुआ। आत्महत्या को हत्या के रूप में पेश करने की कोशिश की गई। यह कोई हवा हवाई बातें नहीं हैं, बल्कि इस पर एक अध्ययन हुआ है कि आख़िर इस मुद्दे को 'हत्या' के रूप में पेश क्यों किया गया। यह अध्ययन मिशिगन यूनिवर्सिटी में एक एसोसिएट प्रोफ़ेसर के नेतृत्व में अध्ययनकर्ताओं की एक टीम ने किया है। अध्ययन में पता चला है कि जो कंटेंट बिल्कुल निराधार हत्या की साज़िश को उछाल रहे थे, उन्हें आत्महत्या के कंटेंट से कहीं ज़्यादा लोगों ने देखा।
अपने फ़ायदे के लिए सुशांत की 'आत्महत्या' को 'हत्या' बताते रहे मीडिया-नेता: अध्ययन
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- 8 Oct, 2020
सुशांत सिंह राजपूत की मौत के मामले में एक अध्ययन हुआ है कि आख़िर इस मुद्दे को 'हत्या' के रूप में पेश क्यों किया गया। यह अध्ययन मिशिगन यूनिवर्सिटी में एक एसोसिएट प्रोफ़ेसर के नेतृत्व में अध्ययनकर्ताओं की एक टीम ने किया है।

सुशांत सिंह राजपूत पर 14 जून से 12 सितंबर 2020 के बीच सोशल मीडिया की सामग्री का अध्ययन किया गया है। इसमें मुख्य तौर पर ट्वीट, यूट्यूब वीडियोज और ट्रेंड शामिल हैं। इसमें ग़लत सूचनाओं को अधिक ट्रैक्शन मिला यानी अधिक लोगों ने उन्हें हाथोंहाथ लिया। इस रिपोर्ट का शीर्षक है- 'Anatomy of a Rumors: Social Media and Suicide of Sushant Singh Rajput' यानी 'अफवाहों की संरचना: सोशल मीडिया और सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या'।