दुनिया भर के डॉक्टरों का एक समूह दावा कर रहा है कि कोरोना से होने वाली ज़्यादातर मौतों का कारण पता लगाया जा चुका है और सदियों से प्रचलित एक दवा को सही समय पर और सही मात्रा में देकर बड़ी संख्या में रोगियों का जीवन बचाया जा सकता है।

महंगी दवा बनाने वाली कम्पनियों की एक लॉबी सस्ती दवाओं को रोकने की मुहिम चला रही है। इनकी पहुंच डब्ल्यूएचओ से लेकर सभी बड़े देशों के स्वास्थ्य विभागों तक है। कुछ कम्पनियों ने पिछले कुछ महीनों में वायरस की दवा बनाने की घोषणा कर दी। इनमें से कोई भी दवा असरदार नहीं है लेकिन उनकी खुराक 40 हज़ार से 50 हज़ार रुपये में बेची जा रही है। ज़ाहिर है कि स्टेरॉयड जैसी सस्ती दवा जिसकी क़ीमत सौ रुपये के क़रीब होगी, अगर उपयोग में लायी जाय तो इन कम्पनियों का मुनाफ़ा ख़त्म हो जाएगा।
डब्ल्यूएचओ और भारत में आईसीएमआर ने इसके उपयोग की अनुमति दे दी है। लेकिन इसकी डोज़ को तय करने के लिए एक साधारण क्लीनिकल ट्रायल की ज़रूरत है जिसको लेकर आईसीएमआर ने चुप्पी साध रखी है। दवा की डोज़ और उपयोग का प्रोटोकोल तय नहीं होने के कारण डॉक्टर दुविधा में हैं।
शैलेश कुमार न्यूज़ नेशन के सीईओ एवं प्रधान संपादक रह चुके हैं। उससे पहले उन्होंने देश के पहले चौबीस घंटा न्यूज़ चैनल - ज़ी न्यूज़ - के लॉन्च में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। टीवी टुडे में एग्ज़िक्युटिव प्रड्यूसर के तौर पर उन्होंने आजतक