जिस पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने चीफ़ जस्टिस रहते हुए कहा था कि सेवानिवृत्ति के बाद जजों की नियुक्ति न्यायपालिका की आज़ादी पर ‘धब्बा’ है, अब सेवानिवृत्ति के बाद उन्हीं की नियुक्ति राज्यसभा के सदस्य के रूप में कर दी गई है। ऐसे में सवाल तो खड़े होने ही थे। सुप्रीम कोर्ट में उनके समकक्ष रहे सेवानिवृत्त जस्टिस मदन बी लोकुर ने ही सवाल उठा दिए। एक गंभीर सवाल। उन्होंने कहा कि क्या आख़िरी क़िला भी ढह गया है? उनका यह ज़िक्र न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और अखंडता को लेकर है।