जिस पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने चीफ़ जस्टिस रहते हुए कहा था कि सेवानिवृत्ति के बाद जजों की नियुक्ति न्यायपालिका की आज़ादी पर ‘धब्बा’ है, अब सेवानिवृत्ति के बाद उन्हीं की नियुक्ति राज्यसभा के सदस्य के रूप में कर दी गई है। ऐसे में सवाल तो खड़े होने ही थे। सुप्रीम कोर्ट में उनके समकक्ष रहे सेवानिवृत्त जस्टिस मदन बी लोकुर ने ही सवाल उठा दिए। एक गंभीर सवाल। उन्होंने कहा कि क्या आख़िरी क़िला भी ढह गया है? उनका यह ज़िक्र न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निष्पक्षता और अखंडता को लेकर है।
पूर्व सीजेआई गोगोई की नियुक्ति पर जस्टिस लोकुर बोले- क्या आख़िरी क़िला ढहा?
- देश
- |
- 17 Mar, 2020
जिस पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने चीफ़ जस्टिस रहते हुए कहा था कि सेवानिवृत्ति के बाद जजों की नियुक्ति न्यायपालिका की आज़ादी पर ‘धब्बा’ है, अब सेवानिवृत्ति के बाद उन्हीं की नियुक्ति राज्यसभा के सदस्य के रूप में कर दी गई है।

जस्टिस गोगोई के राज्यसभा में मनोनयन के बाद न्यायपालिका की इसी स्वतंत्रता और निष्पक्षता को लेकर शँकाएँ जताई जा रही हैं। ऐसी ही शँकाएँ तब भी उठी थीं जब सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली बार चार जजों- पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर, चेलमेश्वर और कुरियन जोसेफ़ ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस की थी। चारों जजों का वह अप्रत्याशित क़दम था। उन्होंने तब के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर सवाल उठाए थे और कहा था कि महत्वपूर्ण केसों का आवंटन सही तरीक़े से नहीं किया जा रहा है। उनका इशारा मुख्य न्यायाधीश और सरकार के बीच संबंधों की ओर था। जस्टिस गोगोई का उस प्रेस कॉन्फ़्रेंस में शामिल होने का फ़ैसला चौंकाने वाला था क्योंकि वह अगले मुख्य न्यायाधीश बनने की कतार में थे। उन्होंने ऐसे में प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर एक जोखिम उठाया था। इस कारण तब जस्टिस रंजन गोगोई में एक अलग ही उम्मीद की किरण दिखी और जब वह चीफ़ जस्टिस बने तो लगा कि न्यायपालिका में काफ़ी कुछ बदलने वाला है।