भारत में सभी समुदायों के लिए एक समान नागरिक कानून इस स्तर पर न तो ज़रूरी है और न ही वांछनीय। यह निष्कर्ष विधि आयोग ने 2018 में निकाला था। उसने यही परामर्श दिया था और इस सुझाव को खारिज कर दिया था कि यह देश में एक समान नागरिक संहिता का समय है।