चुनाव से पहले राजनीतिक दलों द्वारा फ्रीबीज यानी मुफ्त में देने का वादा करने के मामले को सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को तीन जजों की बेंच के पास भेज दिया। कोर्ट ऐसी फ्रीबीज पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है। याचिका में उन राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की मांग की गई है जो चुनाव के दौरान और बाद में मुफ्त उपहार देते हैं। सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर चर्चा के लिए एक विशेषज्ञ समिति और एक सर्वदलीय बैठक बुलाने को कहा।
फ्रीबीज केस को सुप्रीम कोर्ट ने 3 जजों की नयी बेंच को भेजा
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- 26 Aug, 2022
रेवड़ी कल्चर को चल रही बहस के बीच अदालत इस मामले में क्या फैसला सुनाएगी?

निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना के अंतिम दिन इस आदेश को पहली बार ऐतिहासिक रूप से लाइवस्ट्रीम किया गया।
अदालत एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर बीते कई महीनों से सुनवाई कर रही थी। इस मामले में तमिलनाडु में सरकार चला रही डीएमके ने भी याचिका दायर की थी। अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर याचिका में मतदाताओं को लुभाने के लिए 'मुफ्त' का वादा करने वाले राजनीतिक दलों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी। याचिका में कहा गया था कि राजनीतिक दलों के द्वारा जनता के पैसे का दुरुपयोग हो रहा है और राज्य कर्ज के बोझ तले दब रहे हैं।
बताना होगा कि भारत में चुनाव से पहले मतदाताओं को रिझाने के लिए कई राज्यों में राजनीतिक दल जनता से बड़े-बड़े वादे करते हैं और चुनाव के बाद इन्हें पूरा करना उनकी मजबूरी बन जाता है। आम आदमी पार्टी (आप) ने इस याचिका का विरोध किया था और कहा था कि वंचित जनता के सामाजिक-आर्थिक कल्याण के लिए चलाई जा रही योजनाओं को 'मुफ्त' नहीं कहा जा सकता है।