तीन साल पहले किए गए एक आंकलन के अनुसार भारत में हर 15 परिवारों का एक सदस्य किसी न किसी चुनाव-प्रक्रिया में सीधे या परोक्ष रूप से संलग्न रहता है, यानी चुनाव लड़ता है या “लड़ाता” है। मतलब देश में 1.70 करोड़ लोग राजनीति की फ़ैक्ट्री में हैं और यह कोई उत्पादन नहीं करती। ये अपने को प्रत्याशी बनाने या जीतने की प्रक्रिया में मतदाताओं को लुभाने के लिए अपने को अधिक सबल, सक्षम और “ज़रूरत पर” साथ में खड़ा होने वाला बताने के लिए बचे हुए समय में क्या करते हैं, अगर इसका विश्लेषण हो जाये तो यह भी समझ में आ जाएगा कि डॉक्टर, दलित, कमजोर, अल्पसंख्यक, कम संख्या में पुलिस और गाहे-ब-गाहे पत्रकारों पर हमले क्यों हो रहे हैं और हाल के वर्षों में यह हमले बढ़े क्यों हैं।
क्यों डॉक्टरों पर बार बार हो रहे हैं हमले
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- 1 Jul, 2019


अगर स्थानीय विधायक अपने वोटर के 14 साल के बेटे को, जो बग़ैर लाइसेंस कार चलाते हुए सड़क पर चल रहे किसी बूढ़े व्यक्ति को घायल करने के आरोप में पकड़ कर थाने लाया गया है, कुछ “ले-देकर” मामला रफ़ा-दफ़ा करवा देता है तो यह उसकी शक्ति-सम्पन्नता, प्रभुत्व या “संकट के समय साथ खड़े रहने की” योग्यता मानी जायेगी और पूरा इलाक़ा उसे वोट देगा।





















