अमेरिका मंदी की चपेट में है। कम से कम तकनीकी परिभाषा के लिहाज से तो यह बात माननी ही पड़ेगी। लगातार दो तिहाई ऐसी गुजर चुकी हैं जब अमेरिकी अर्थव्यवस्था बढ़ने के बजाय सिकुड़ती दिखाई दी है। यह खबर पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय है। चिंता और बढ़ जाती है जब आप देखते हैं कि इस वक्त जो मंदी और जो भीषण संकट सामने दिख रहा है वो काफी हद तक उन कदमों का नतीजा है जो पिछले दो साल में इसी चक्कर में उठाए गए थे कि कहीं मंदी न आ जाए।

बड़ा डर इस बात का है कि सत्तर के दशक की मंदी के साथ-साथ 2008 के आर्थिक संकट की जड़ यानी कर्ज का संकट भी फिर सिर उठा रहा है। यह दोनों अलग-अलग ही आर्थिक भूचाल ला चुके हैं। अब अगर एक साथ आ गए तो क्या होगा सोचा जा सकता है। अमेरिकी अर्थशास्त्री नूरिएल रुबिनी ने यही आशंका जताई है और उनका कहना है कि ऐसा हुआ तो अमेरिकी शेयर बाज़ार आधा हो सकता है।