नए भारत में आज़ादी एक बदनाम शब्द है। नहीं, बदनाम से भी ज़्यादा यह एक ख़ौफ़नाक़ शब्द बन चुका है। इस शब्द के इस्तेमाल की वज़ह से आपके साथ कुछ भी हो सकता है। आप देशद्रोही, पाकिस्तानी, हिंदू विरोधी कुछ भी घोषित किए जा सकते हैं। आपके ख़िलाफ़ कहीं भी मामला दर्ज़ किया जा सकता है, आपको गिरफ़्तार करके जेल भेजा जा सकता है। आपके ऊपर राजद्रोह और आतंकवाद निरोधी अधिनियम की धाराएँ लगाकर आपको अनंतकाल तक जेल में रखा जा सकता है।
घुटती आज़ादी की ख़ौफ़नाक़ तसवीरें और उनका एक अलग तर्जुमा
- साहित्य
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- 13 Sep, 2021

अरुंधति यहाँ आज़ादी की ज़ुबान की बात कर रही हैं। उस आज़ादी की ज़ुबान की जो उनके तमाम लेखन में निर्बाध बहती देखी जा सकती है। अरुंधति की आज़ाद ज़ुबान हर जगह आज़ादी तलाशती है। हमारे शिकस्ता ज़ख़्मी दिल लेख में वे पुलवामा हमले और उसके चुनावी दोहन के प्रसंग को उठाते हुए कश्मीरियों की माँग पर आ जाती हैं।
लड़ी होगी हमारे पूर्वजों ने आज़ादी के लिए लड़ाई, दी होगी आज़ादी के नाम पर शहादत, मगर आज इसकी बात करना भी गुनाह है। यह नाक़ाबिले बर्दाश्त है कि कोई आज़ादी का नारा लगाए। हमारा मीडिया उसका चरित्र हनन करने में एक क्षण की भी देर नहीं करेगा। वह देशवासियों को इतना भड़का देगा कि वे आपकी मॉब लिंचिंग कर सकते हैं। लेकिन इन तमाम ख़तरों के बावजूद बात तो करनी ही होगी और खुलकर करनी होगी। अगर आज़ादी बचानी है तो सारे जोखिम उठाने होंगे।