बीसवीं सदी के आठवें दशक से दलित साहित्य का उभार एक बड़ी परिघटना थी। दलित लेखकों ने साहित्य और इतिहास के परिसर में अपने अलहदा अनुभव और नवाचार से हिंदी साहित्य को नया आयाम देने का काम किया है। दलित साहित्यकारों ने पहले तो अपनी आत्मकथाओं से संसार को यह बताया कि उनके ऊपर क्या गुजरी है। इसके बाद उन्होंने इतिहास और साहित्य से ओझल किए जा चुके बहुजन नायकों को सामने लाने के ऐतिहासिक काम को अंजाम दिया।
दलित इतिहास लेखन को विस्तार देतीं पुस्तिकाएँ
- साहित्य
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- 24 Nov, 2021

इतिहास लेखन में दलितों को क्या उचित स्थान मिला? क्या दलितों की भूमिका का उस तरह बखान हुआ है जिस तरह से किया जाना चाहिए था? जानिए, मोहनदास नैमिशराय ने अपनी पुस्तिकाओं में इसका कैसे विस्तार दिया है।
पिछले चार दशकों से दलित साहित्य में सक्रिय भूमिका निभाने वाले वरिष्ठ दलित चिंतक मोहनदास नैमिशराय लगातार लेखन से बहुजन इतिहास का उत्पादन करते आ रहे हैं। इस विमर्शकार ने सन 2013 में ‘भारतीय दलित आंदोलन का इतिहास’ शीर्षक से चार खंडों में इतिहास ग्रंथ लिखा था। मोहनदास नैमिशराय का यह अकादमिक इतिहास ग्रंथ इतिहास की दुनिया में मील का पत्थर है। यह इतिहास ग्रंथ केवल बहुजन समाज के सामाजिक राजनैतिक, साहित्यिक, सांस्कृतिक इतिहास को ही सामने नहीं रखता है बल्कि यह ग्रंथ सवर्णों के इतिहास और ज्ञान की पैंतरेबाजी को भी हमारे सामने रखने का काम करता है।