बीसवीं सदी के आठवें दशक से दलित साहित्य का उभार एक बड़ी परिघटना थी। दलित लेखकों ने साहित्य और इतिहास के परिसर में अपने अलहदा अनुभव और नवाचार से हिंदी साहित्य को नया आयाम देने का काम किया है। दलित साहित्यकारों ने पहले तो अपनी आत्मकथाओं से संसार को यह बताया कि उनके ऊपर क्या गुजरी है। इसके बाद उन्होंने इतिहास और साहित्य से ओझल किए जा चुके बहुजन नायकों को सामने लाने के ऐतिहासिक काम को अंजाम दिया।