आज के मेन स्ट्रीम मीडिया को देखकर ऐसा लगता है जैसे ये लोग डर की दुकान खोलना चाहते हैं! राष्ट्रवाद के नाम पर देश को नफ़रत की आग में झोंकना चाहते हैं। ऐसा लगता है कि इन्होंने आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को ख़राब करने का ठेका ले रखा है। आज दर्शक और नागरिक की परिभाषा क्या होती है; वो मिटाने की कोशिश की जा रही है। लोकतंत्र के मायने क्या होते हैं, राष्ट्रवाद क्या होता है, निष्पक्षता क्या होती है, उनकी लोगों के प्रति, देश के प्रति ज़िम्मेदारी क्या होती है। इन सारे सवालों को मीडिया बहुत पीछे छोड़ चुका है। यही कारण है कि भारतीय मीडिया अपनी विश्वसनीयता को लगातार खोते जा रहा है।
सूचनाओं के नाम पर एजेंडा चलाता है मेन स्ट्रीम मीडिया?
- मीडिया
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- 25 Jul, 2022

क्या मुख्यधारा का मीडिया अपनी ज़िम्मेदारी ठीक से निभा रहा है? क्या बेरोज़ग़ारी, ग़रीबी, महंगाई जैसे मुद्दों पर डिबेट होती है या सत्ता पक्ष से सवाल किया जाता है? यदि नहीं तो क्यों?
माना जाता है कि मीडिया लोकतंत्र का एक मज़बूत स्तंम्भ होता है, जिसके ऊपर लोकतंत्र बचाने की जिम्मेदारी होती है। लोगों की आवाज को सत्ता तक पहुँचाने का एक जरिया होता है। लेकिन इसके रवैये को देखकर लगता है कि मीडिया सत्ताधारी दलों के एजेंडे को दर्शकों तक पहुँचाने का जरिया बनकर रह गया है। इसमें सिर्फ सत्ता की आवाज़ है, जनता और विपक्ष की आवाज मीडिया में दूर-दूर तक दिखाई नहीं देती।