मैं सन चौरासी में दिल्ली आ चुका था, लगभग साल भर हुआ था। उससे पहले मैं जून 1982 में इलाहाबाद से, जहाँ मैं 'अमृत प्रभात' अख़बार में था, भोपाल आ गया था। जबलपुर से महेश योगी का अख़बार 'ज्ञानयुग प्रभात' निकलता था जिसके एक तरह के सीईओ हमारे बड़े भाई जैसे संतोष सिंह हो गये थे, जो कि महेश योगी के रिश्तेदार थे... वे हमारे पत्रिका ग्रुप के अंग्रेज़ी अख़बार 'नॉर्दन इंडिया पत्रिका' में खेल संवाददाता थे... उनके साथ मेरी मंगलेश डबरालजी, विनोद श्रीवास्तव की बहुत आत्मीयता थी... पत्रिका के न्यूज़ एडिटर विश्वमोहन बडोला जी थे। उनसे और ज्ञानरंजन जी से भी संतोष के अत्यंत प्रेमपूर्ण संबंध थे...। संतोष सिंह जिनका कुछ साल पहले निधन हो गया, इन दोनों का बहुत आदर करते थे। ज्ञान जी से उनका कोई इलाहाबादी नाता भी था। इसी कारण ज्ञान जी ने जबलपुर में अख़बार जमाने में उनकी बहुत मदद की।
…जब इंदिरा गांधी को गोली लगने की ख़बर आयी
- विचार
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- 1 Nov, 2021

देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 31 अक्टूबर को हत्या कर दी गई थी। इस दिन और इसके बाद कुछ दिनों तक किस हाल से दिल्ली गुजरी थी जानिए वरिष्ठ पत्रकार मनोहर नायक की क़लम से...
बहरहाल, संतोष जी मुझसे जबलपुर चलने की कहते रहे पर मैं नहीं गया। मेरे साथ रिपोर्टर रहे, मित्र अजय चतुर्वेदी को उन्होंने भोपाल संवाददाता बनाया। कुछ ही महीने बाद अजय ने सूचना सेवा की परीक्षा पास कर ली और वे वहीं ऑल इंडिया रेडियो में पदस्थ हो गये। अब संतोष जी भोपाल जाने के लिये मेरे पीछे पड़े और अंततः मैं भोपाल आ गया। चौहत्तर बंगलो के बीच बनी निशात कॉलोनी का सोलह नम्बर का दो मंज़िला मकान मेरा घर और दफ़्तर हो गया। एक मकान छोड़कर अठारह नम्बर में इंडिया टुडे के संवाददाता श्रीकांत खांडेकर रहते थे जिनसे गहरा अपनापा हुआ।