राहुल गांधी ने जोर दिया कि राजनीति को आम लोगों की रोजमर्रा की समस्याओं से जुड़ा होना चाहिए, न कि केवल आयोजनों और दिखावे पर आधारित। जानें उनके बयान के मायने क्या।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने गुरुवार को केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला और कहा कि देश को ऐसी राजनीति की ज़रूरत है जो आयोजनों की चमक-दमक पर नहीं, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी की वास्तविकता से जुड़ी हो। उन्होंने दोपहिया और कारों की बिक्री में गिरावट के साथ-साथ मोबाइल बाजार में कमी का हवाला देते हुए सरकार की आर्थिक नीतियों की आलोचना की।
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कहा कि देश को ऐसी अर्थव्यवस्था की ज़रूरत है जो सिर्फ कुछ चुनिंदा पूंजीपतियों के लिए नहीं, बल्कि हर भारतीय के लिए काम करे। उन्होंने एक्स पर लिखा, 'आँकड़े सच बोलते हैं। पिछले एक साल में दोपहिया वाहनों, कारों की बिक्री में गिरावट आई है। मोबाइल बाजार में भी गिरावट आई है। दूसरी तरफ़, ख़र्च और कर्ज़ दोनों लगातार बढ़ रहे हैं: मकान का किराया, घरेलू महंगाई, शिक्षा ख़र्च, लगभग हर चीज महंगी होती जा रही है।'
उन्होंने कहा कि ये सिर्फ आंकड़े नहीं हैं, बल्कि आर्थिक दबाव की वह हकीकत है, जिसके तहत हर आम भारतीय जूझ रहा है। राहुल गांधी ने जोर देकर कहा कि हमें ऐसी अर्थव्यवस्था चाहिए जो हर भारतीय के लिए काम करे, न कि सिर्फ कुछ चुनिंदा पूंजीपतियों के लिए।
उनके इस बयान ने न केवल आर्थिक नीतियों पर सवाल उठाए हैं, बल्कि मौजूदा सरकार की प्राथमिकताओं और आम जनता की वास्तविक समस्याओं पर भी बहस छेड़ दी है।
राहुल गांधी ने अपने बयान में कुछ ठोस आँकड़े पेश किए। पिछले एक साल में टू-व्हीलर की बिक्री में 17% और कार की बिक्री में 8.6% की गिरावट, साथ ही मोबाइल मार्केट में 7% की कमी। ये आँकड़े ऑटोमोबाइल और उपभोक्ता वस्तुओं के क्षेत्र में मांग में कमी को दिखाते हैं, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चिंताजनक संकेत हैं। ऑटोमोबाइल सेक्टर भारत की जीडीपी में करीब 7% का योगदान देता है और लाखों लोगों को रोजगार देता है। यह सेक्टर लंबे समय से मंदी का सामना कर रहा है।
टू-व्हीलर और कारों की बिक्री में गिरावट न केवल मध्यम वर्ग की क्रय शक्ति में कमी को दिखाती है, बल्कि ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में आर्थिक तनाव को भी उजागर करती है।
मोबाइल मार्केट में 7% की गिरावट भी एक अहम संकेत है। भारत में स्मार्टफोन की मांग तेजी से बढ़ रही थी, लेकिन अब इस क्षेत्र में भी मंदी देखी जा रही है। यह इस बात का प्रमाण है कि उपभोक्ता खर्च करने में कटौती कर रहे हैं, जो आर्थिक अनिश्चितता और बढ़ती लागत का परिणाम हो सकता है।
राहुल गांधी ने बढ़ते खर्च और कर्ज के बोझ पर भी जोर दिया। मकान का किराया, घरेलू महंगाई, शिक्षा और अन्य आवश्यक खर्चों में वृद्धि ने मध्यम और निम्न-मध्यम वर्ग को सबसे अधिक प्रभावित किया है। हाल के आंकड़ों के अनुसार, भारत में मुद्रास्फीति की दर 2024-25 में 4.5-5% के आसपास रही है, लेकिन खाद्य और ईंधन की कीमतों में उतार-चढ़ाव ने आम आदमी की जेब पर भारी असर डाला है। इसके अलावा, घरेलू कर्ज में भी तेजी से वृद्धि हुई है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, घरेलू कर्ज का स्तर जीडीपी के 40% के करीब पहुंच गया था।
राहुल गांधी का यह बयान मौजूदा सरकार की आर्थिक नीतियों पर एक तीखा हमला है। उन्होंने इवेंट्स की चमक और कुछ गिने-चुने पूंजीपतियों के लिए काम करने वाली अर्थव्यवस्था की आलोचना की है। यह इशारा कॉरपोरेट टैक्स में कटौती, बड़े बुनियादी ढाँचा प्रोजेक्ट्स और मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों की ओर हो सकता है, जिन्हें सरकार ने बढ़ावा दिया है, लेकिन जिनके लाभ आम जनता तक सीमित रूप से पहुँचे हैं। विपक्ष का यह तर्क रहा है कि सरकार की नीतियाँ बड़े उद्योगपतियों को फ़ायदा पहुँचाने वाली रही हैं, जबकि छोटे व्यवसाय, किसान और मध्यम वर्ग उपेक्षित रहा है।
राहुल गांधी का यह बयान 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद की स्थिति को देखते हुए अहम है। कांग्रेस आर्थिक असमानता और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को उठाकर सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रही है। यह बयान मध्यम और निम्न-मध्यम वर्ग के बीच असंतोष को भुनाने की रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जो महंगाई और आर्थिक तनाव से सबसे अधिक प्रभावित है। हालांकि, सरकार के समर्थक तर्क दे सकते हैं कि वैश्विक आर्थिक मंदी, यूक्रेन संकट और आपूर्ति श्रृंखला की समस्याओं ने भारत की अर्थव्यवस्था पर भी असर डाला है, और ये समस्याएं केवल भारत तक सीमित नहीं हैं।
राहुल गांधी ने ऐसी अर्थव्यवस्था की बात की है जो हर भारतीय के लिए काम करे। वह समावेशी विकास और सामाजिक कल्याण पर जोर देता है। यह विचार निश्चित रूप से आकर्षक है, लेकिन इसे लागू करने के लिए ठोस नीतिगत प्रस्तावों की जरूरत होगी।
राहुल गांधी का बयान आर्थिक संकट के दौर में आम आदमी की पीड़ा को दिखाता है। उनके द्वारा पेश किए गए आंकड़े और बढ़ती महंगाई का जिक्र न केवल आर्थिक नीतियों पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि भारत जैसे विशाल और विविध देश में समावेशी विकास कितना चुनौतीपूर्ण है।