पूर्वोत्तर के पर्वतीय राज्य मणिपुर में मैतेई और कुकी-जो समुदाय के बीच बड़े पैमाने पर जातीय हिंसा शुरू होने के करीब ढाई साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार राज्य के दौरे पर जाने वाले हैं. लेकिन कुकी उग्रवादी संगठनों के खिलाफ सैन्य अभियानों पर रोक के समझौते पर मैतेई समुदाय के विरोध और इसके प्रावधानों पर सरकार और कुकी संगठनों के परस्पर विरोधी बयानों ने इस दौरे से शांति बहाल होने की उम्मीदों को धूमिल कर दिया है.
मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने की हाईकोर्ट की सिफारिश के बाद राज्य में दोनों समुदायों के बीच शुरू हुई हिंसा में अब तक 260 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है और 50 हजार से ज्यादा बेघर हो चुके हैं. लेकिन गैर-सरकारी आंकड़ों के मुताबिक हिंसा में मरने वालों की तादाद इससे कहीं ज्यादा है. हिंसा शुरू होने के बाद से ही प्रधानमंत्री के दौरे की मांग उठती रही है और वो लगातार विपक्ष के निशाने पर रहे हैं. 
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हिंसा की शुरुआत में राज्य का दौरा जरूर किया था. लेकिन प्रधानमंत्री वहां नहीं गए. अब 13 सितंबर को वो मिजोरम को असम से जोड़ने वाली रेलवे लाइन के उद्घाटन के मौके पर आइजल पहुंचेंगे. वहां से उनको मणिपुर जाना है. हालांकि अब तक सरकारी तौर पर प्रधानमंत्री के कार्यक्रम की पुष्टि नहीं की गई है. लेकिन राजधानी इंफाल के कांग्ला फोर्ट के सामने इसकी तैयारियां की जा रही हैं. इसके साथ ही हिंसा से सबसे ज्यादा प्रभावित चूड़ाचांदपुर जिले को नो-फ्लाई जोन घोषित कर दिया गया है.
प्रधानमंत्री के दौरे से पहले केंद्र सरकार ने कुकी उग्रवादी गुटों के साथ दिल्ली में हुए समझौते को राज्य में शांति की बहाली दिशा में एक अहम कदम बताया है. लेकिन उसके ठीक बाद दोनों समुदायों के बीच शांति वार्ता में शामिल एक आदिवासी नेता की कुकी उग्रवादियों की हत्या ने सरकार के इस दावे पर सवाल खड़ा कर दिया है. इसके साथ ही सवाल पूछा जा रहा है कि क्या प्रधानमंत्री के दौरे से राज्य में हालात सामान्य होंगे? कुकी-जो काउंसिल ने भी इस मुद्दे पर अलग बयान दिया है.
दिल्ली में हुए त्रिपक्षीय समझौते की सबसे अहम बात हिंसा शुरू होने के बाद से ही बंद नेशनल हाइवे-2 को खोलने पर बनी सहमति है. इसे मणिपुर की जीवन रेखा माना जाता है. यह नागालैंड के व्यापारिक शहर दीमापुर को राजधानी इंफाल से जोड़ती है. राज्य को जरूरी वस्तुओं की सप्लाई में इसकी अहम भूमिका रही है. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बीते मार्च में ही इसे मुक्त आवाजाही के लिए खोलने का एलान किया था. लेकिन कुकी संगठनों ने इस पर लगी पाबंदी हटाने से इंकार कर दिया था.
समझौते में कुकी उग्रवादियों के खिलाफ एक साल तक सैन्य अभियान रोकने पर भी सहमति बनी है. पहले भी यह समझौता था. लेकिन हिंसा में उग्रवादी संगठनों की भूमिका को ध्यान में रखते हुए इसे निलंबित कर दिया गया था. ताजा समझौता एक साल के लिए है. इसमें कुछ नई शर्तें भी जोड़ दी गई हैं. इस दौरान इसकी कड़ी निगरानी की जाएगी और उल्लंघन की स्थिति में इसकी समीक्षा की जाएगी.
इस समझौते के तहत कुकी उग्रवादियों ने संवेदनशील इलाकों में बने अपने सात शिविरों को हटाने और अपने हथियार सुरक्षा बलों को सौंपने पर भी सहमति जताई है. तीनों पक्ष मणिपुर में स्थायी शांति बहाल करने के लिए बातचीत की प्रक्रिया शुरू करने और इसके जरिए समस्या का समाधान करने पर भी सहमत हो गए हैं.
हालांकि कुकी-जो काउंसिल की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि नेशनल हाइवे-2 को फिर से खोलने का सवाल ही नहीं उठता. उसका दावा है कि इस सड़क को कभी बंद ही नहीं किया गया था. उसका कहना है कि यह मुक्त आवाजाही सिर्फ नागालैंड से मणिपुर के बीच नेशनल हाइवे पर ही लागू होगा. लेकिन इससे मैतेई समुदाय के लोगों को कुकू बहुल इलाको में मुक्त आवाजाही की अनुमति नहीं मिलेगी.
दूसरी ओर, मैतेई संगठन कोआर्डिनेशन कमिटी आन मणिपुर यूनिटी ने भी इस समझौते का विरोध किया है. उसने एक बयान में कहा है कि नागालैंड से जरूरी सामान लेकर आने वाले ट्रकों पर कुकी संगठनों के हमला नहीं करने की कोई गारंटी नहीं है. कमिटी ने कुकी उग्रवादी संगठनों के खिलाफ सैन्य अभियान एक साल के लिए स्थगित रखने के प्रावधान पर भी आपत्ति जताई है. उसने इसे मणिपुर के लोगों के हितों के खिलाफ बताया है. उसकी दलील है कि मणिपुर मंत्रिमंडल ने 10 मार्च, 2023 को सैन्य अभियान पर रोक लगाने वाले समझौते को रद्द करने का फैसला किया था. लेकिन केंद्र ने उसे बहाल कर मंत्रक्षिमंडल के फैसले का अपमान किया है.
इस बीच, मैतेई और कुकी समुदाय के बीच शांति प्रक्रिया में शामिल एक आदिवासी नेता का शव बरामद होने से शांति बहाल करने की उनकी (कुकी उग्रवादियों की) मंशा पर भी सवाल उठ रहे हैं. नेखाम जोमाहो नामक उस आदिवासी नेता को बीते शनिवार को अपहरण कर लिया गया था. उनका शव असम के कार्बी आंग्लांग जिले में एक नदी से बरामद किया गया. 
अब राजनीतिक और सामाजिक हलकों में सवाल उठ रहा है कि प्रधानमंत्री के दौरे से मणिपुर को क्या हासिल होगा. प्रदेश कांग्रेस ने इस पर सवाल उठाते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री को बहुत पहले ऐसा करना चाहिए था. अब यह मामला इतना उलझ गया है कि इसका समाधान बहुत मुश्किल है.
दूसरी और भाजपा दिल्ली में हुए समझौते के तहत नेशनल हाइवे-2 को मुक्त आवाजाही के लिए खोलने के फैसले को ऐतिहासिक बता  रही है.
लेकिन राजनीतिक पर्यवेक्षकों को इस बात पर संदेह है कि प्रधानमंत्री के दौरे से रातों-रात तस्वीर में बदलाव आएगा. एक पर्यवेक्षक के. ओनियाम सिंह कहते हैं कि केंद्र की लगातार उपेक्षा की वजह से यह समस्या बेहद उलझ चुकी है. मैतेई और कुकी समुदाय के बीच दूरियां इतनी बढ़ गई हैं कि इसे शीघ्र पाटना असंभव नहीं तो मुश्किल जरूर है. अब देखना यह है कि प्रधानमंत्री के पास राज्य में शांति और सामान्य स्थिति बहाल करने के लिए क्या ठोस योजना है.