चीन सेना गलवान घाटी में पीछे हटी है। ये ज़मीन नियंत्रण रेखा पर भारतीय ज़मीन का हिस्सा है। पैंगोंग घाटी में भारत के नियंत्रण वाले हिस्से में चीनी सैनिक अब भी बने हुए हैं। ये भारत की राजनीति की जीत है या हार।
चीन बड़े पैमाने पर बढ़ रहे अपने उद्योग के लिए कच्चे माल की ज़रूरतों को पूरा करने के लालच से लद्दाख पर नज़रें गड़ाए हुए है। गलवान घाटी, पैंगोंग त्सो, डेमचोक, फाइव फिंगर्स आदि में हालिया चीनी घुसपैठ का असली कारण यही है।
गत पांच जुलाई को भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के स्टेट काउंसलर और विदेश मंत्री वांग यी के बीच बातचीत के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा पर
गलवान घाटी से भारतीय और चीनी सेना पीछे हट रही हैं, मगर शक़-शुबहे बने हुए हैं। वे सवाल भी उठ रहे हैं कि दोनों देशों के बीच सहमति किन बिंदुओं पर बनी है और वह किसके पक्ष में झुकी हुई । एक सवाल ये भी है क्या स्थायी शांति के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से सीधी बात नहीं करनी चाहिए? वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की रिपोर्ट
कहीं ऐसा तो नहीं कि अमेरिका भारत-चीन तनाव का इस्तेमाल चीन से अपनी खुंदक निकाले के लिये कर रहा है? वह एशिया क्षेत्र में अपनी सैनिक क्षमता को और मजबूत करना चाहता है?
लद्दाख में क़रीब दो महीने से चल रहे भारत चीन सीमा विवाद के बीच चीनी सेना के साथ ही भारतीय सैनिकों ने पीछे हटने की प्रक्रिया तो शुरू कर दी है, लेकिन सवाल है कि क्या भारत ने डोकलाम विवाद से सबक़ लिया है।