उत्तर प्रदेश विधान मंडल का हालिया मानसून सत्र आहूत करना भले ही योगी शासन के लिए संवैधानिक मजबूरी रही हो, लेकिन 'माइक्रो' रूप में इसे निपटाना, बिना बहस और मतदान के चंद घंटों में 28 विधेयकों को ताबड़तोड़ तरीके से पारित करा देना, सदन के भीतर विरोधी दलों के अधिकांश सदस्यों को कुछ भी कहने की अनुमति न देना और न ही अपनी पार्टी के विधायकों को बोलने का मौक़ा देना, प्रेस गैलरी में पत्रकारों की 'एंट्री' को प्रतिबंधित कर देना, इसे राज्य के विधान मंडल इतिहास की ऐसी पहली घटना बना डालता है।
अधिकृत रूप से यद्यपि इस हड़बड़ी को कोरोना भय से जनित बता कर प्रचारित किया गया लेकिन प्रदेश की राजनीति के जानकार भय के मूल में मुख्यमंत्री और उनके निज़ाम के विरुद्ध पार्टी के भीतर तेज़ी से उभरते विद्रोही स्वरों को मानते हैं।


























