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कनखल (हरिद्वार) के इस मंदिर में ड्रेस कोड लागू किया गया है।

उत्तराखंड के 3 मंदिरों में महिलाओं के लिए ड्रेस कोड क्या लागू हो पाएगा?

भाजपा शासित उत्तराखंड में महानिर्वाणी अखाड़े के अंतर्गत आने वाले तीन प्रमुख मंदिरों में महिलाओं और लड़कियों के लिए ड्रेस कोड लागू किया गया है। यह जानकारी न्यूज एजेंसी एएनआई ने मंगलवार को दी है। यहां यह बताना जरूरी है कि उत्तराखंड में दो बड़े तीर्थ स्थल केदारनाथ धाम और बद्रीनाथ धाम सरकार की देखरेख में संचालित होते हैं, उनमें किसी प्रकार का ड्रेस कोड लागू नहीं है। इसी तरह हरिद्वार में ढेरों मंदिर हैं, उनमें भी कोई ड्रेस कोड लागू नहीं किया गया है। लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या सार्वजनिक स्थलों पर ऐसे ड्रेस कोड लागू किए जा सकते हैं और क्या इनका पालन करा पाना मुमकिन होगा। 
महानिर्वाणी अखाड़ा के सचिव और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी ने एएनआई को बताया कि महिलाएं और लड़कियां छोटे कपड़े पहनकर महानिर्वाणी अखाड़े के तहत आने वाले तीन मंदिरों में अब प्रवेश नहीं कर सकती हैं।

कौन कौन से मंदिर

उन्होंने कहा कि इन मंदिरों में हरिद्वार के कनखल में दक्ष प्रजापति मंदिर, पौड़ी जिले में नीलकंठ महादेव मंदिर और देहरादून में टपकेश्वर महादेव मंदिर शामिल हैं। ये तीनों मंदिर महानिर्वाणी अखाड़े के अंतर्गत आते हैं। अब इनमें सभी संस्कारों का पालन करते हुए आने की इजाजत होगी।

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'मंदिर मनोरंजन की जगह नहीं' उन्होंने कहा कि अखाड़े ने मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं से अपील की है कि मंदिर आत्मनिरीक्षण का स्थान है मनोरंजन का नहीं। महानिर्वाणी अखाड़ा की ओर से महिलाओं और लड़कियों से अपील की गई है कि अगर वे मंदिर में पूजा के लिए आ रही हैं तो वे भारतीय परंपरा के अनुसार कपड़े पहनें। तभी उन्हें मंदिर में प्रवेश मिलेगा।"

महंत रवींद्र पुरी ने लड़कियों और महिलाओं के साथ-साथ उनके परिवार के सदस्यों से अपील की कि वे मंदिरों में कम से कम 80 फीसदी शरीर को ढक कर ही आएं।
उन्होंने दावा किया कि दक्षिण भारत और महाराष्ट्र के मंदिरों में यह व्यवस्था पहले से ही लागू है। उन्होंने कहा, "अब यहां भी यह व्यवस्था लागू की जा रही है। ताकि मंदिर आने वाले श्रद्धालुओं को किसी तरह की असहज स्थिति का सामना न करना पड़े।"

नागपुर में भी ड्रेस कोड

एएनआई के मुताबिक नागपुर के कुछ मंदिर भक्तों के लिए ड्रेस कोड लागू करते हैं। इससे पहले, महाराष्ट्र के नागपुर जिले में चार मंदिरों ने भक्तों के लिए ड्रेस कोड लागू किया था। बहरहाल, उत्तराखंड के ही धंतोली के गोपाल कृष्ण मंदिर, बेल्लोरी (सावनेर) के संकटमोचन पंचमुखी हनुमान मंदिर, कनोलीबारा के बृहस्पति मंदिर और हिलटॉप क्षेत्र के दुर्गा माता मंदिर में 26 मई से ड्रेस कोड लागू किया गया है।

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पूजा स्थलों में ड्रेस कोड का मुद्दा इस महीने की शुरुआत में सुर्खियों में था, जब महाराष्ट्र के प्रसिद्ध तुलजा भवानी मंदिर ने यह नियम करने की कोशिश की थी कि आने वाले श्रद्धालु कैसे कपड़े पहनें। मंदिर से कहा गया था कि भक्तों को "आपत्तिजनक" कपड़े नहीं पहनने चाहिए। यह निर्णय उत्तरी महाराष्ट्र के जलगाँव में महाराष्ट्र मंदिर ट्रस्ट परिषद की बैठक के बाद लिया गया।

उपसंहार

कभी कहा गया यह जुमला आज भी प्रसिद्ध है - इंसान की पहचान उसके कपड़ों से होती है। भारतीय संविधान ने हम क्या खाएंगे, क्या पहनेंगे, क्या भाषा बोलेंगे, इसकी छूट दी है। लेकिन तमाम राज्यों में सरकारें अपनी सुविधा अनुसार तमाम प्रतिबंध लागू करती रहती हैं। लेकिन संस्थाएं भी अब ड्रेस कोड लागू करने लगी हैं। लेकिन सार्वजनिक स्थलों पर ऐसे ड्रेस कोड लागू करा पाना मुश्किल होता है। कर्नाटक में पिछली बीजेपी सरकार ने मुस्लिम लड़कियों और टीचरों पर हिजाब लगाकर स्कूल-कॉलेज आने पर रोक लगा दी थी। सुप्रीम कोर्ट का अभी अंतिम फैसला आना बाकी है। एक नेता ने तो मुस्लिमों को उनके ड्रेस से पहचाने जाने की बात अपने भाषण में कही थी। लेकिन मंदिर, मस्जिद, दरगाह, गुरुद्वारा, चर्च, सिनेगॉग जैसी सार्वजनिक जगहों पर ड्रेस कोड लागू करना अटपटा है।
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क़मर वहीद नक़वी
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