जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र संघ के चुनाव संपन्न हो गए हैं। 4 साल के बाद होनेवाले इन चुनावों में संयुक्त वामपंथी मोर्चे को जीत हासिल हुई है। ‘जे एन यू’ फिर से लाल हुआ’ जैसे नारे लिखे जा रहे हैं। लेकिन हर पद पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के उम्मीदवार कुछ ही अंतर से हारे हैं। इसलिए वे इसे अपनी जीत बतला रहे हैं क्योंकि आपस में मतभेद रहनेवाले वामपंथी उनके डर से एक साथ आए फिर भी उनके और ए बी वी पी के बीच फ़र्क महज़ कुछ सौ मतों का ही रहा। उनका तर्क है कि अगर पहले की तरह वे अलग अलग चुनाव लड़ते तो निश्चय ही ए बी वी पी को विजय हासिल होती।
जेएनयू: वाम, दक्षिणपंथी या उदार विचार, सब साथ रह सकते हैं?
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- 25 Mar, 2024

जेएनयू परिसर।
पहले लोग अपने बच्चों को जे एन यू भेजने में शान का अनुभव करते थे, लेकिन अब इसे वे एक तरह की मजबूरी क्यों मानने लगे हैं? जेएनयू चुनाव का क्या संदेश है?
जे एन यू के छात्र संघ के चुनाव को लेकर बाहरी दुनिया में उत्सुकता और उत्तेजना असाधारण है। इस बार यह और अधिक थी। आख़िर ये चुनाव एक लंबे इंतज़ार के बाद हो रहे थे। इस बीच जे एन यू में बहुत कुछ बदला है। परिसर के बाहर भी। जे एन यू को आम तौर पर लोग, या कहें हिंदू समाज में बहुमत संदेह और घृणा से देखने लगा है। इसे मुसलमानों, वामपंथियों, देशद्रोहियों, आतंकवादियों के गढ़ के रूप में चित्रित किया जाने लगा है और इसने जनमत को प्रभावित किया है। पहले लोग अपने बच्चों को जे एन यू भेजने में शान का अनुभव करते थे, लेकिन अब इसे वे एक तरह की मजबूरी मानते हैं।