कोरोना महामारी से हो रही मौतों के बीच सोशल मीडिया पर कुछ नागरिक समूहों द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस्तीफ़े की माँग यह मानकर की जा रही है कि इससे मौजूदा संकट का तुरंत समाधान हो जाएगा।
आज़ादी के बाद की स्मृतियों में अब तक के सबसे बड़े नागरिक संकट के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी क्या संवेदनात्मक रूप से उतने ही विचलित हैं जितने कि उनके करोड़ों देशवासी हैं?
इस समय मुख्य धारा का अधिकांश मीडिया, जिसमें कि प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक दोनों शामिल हैं, बिना किसी घोषित-अघोषित सरकारी अथवा अदालती हुक़्म के ही अपनी पूरी क्षमता के साथ सत्ता के चरणों में बिछा हुआ है।
कोरोना के रिकॉर्ड संक्रमण के बीच देश इस समय एक अभूतपूर्व संकट से गुज़र रहा है। कर्णधारों को भनक नहीं लग पाई कि समूचा देश केवल एक साल के भीतर ही हारने लगेगा और वे मरने वालों की गिनती करते रह जाएँगे।
सवाल यह है कि ममता के ख़िलाफ़ बीजेपी के सफल धार्मिक ध्रुवीकरण का मुख्य कारण अगर वर्तमान मुख्यमंत्री की कथित मुसलिम तुष्टिकरण की नीतियाँ हैं तो क्या राज्य के हिंदू मतदाता घोर नास्तिक माने जाने वाले मार्क्सवादियों की हुकूमत में पूरी तरह से संतुष्ट थे?
लोगों की यह जानने की भारी उत्सुकता है कि बंगाल चुनावों के नतीजे क्या होंगे? ममता बनर्जी हारेंगी या जीत जाएँगी? सवाल वास्तव में उलटा होना चाहिए। वह यह कि बंगाल में नरेंद्र मोदी चुनाव जीत पाएँगे या नहीं?
दो सर्वेक्षणों में बताया गया है कि पश्चिम बंगाल की काँटे की लड़ाई में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस फिर अपनी सरकार बना लेगी। लेकिन अमित शाह के मुताबिक़ बीजेपी को दो सौ से अधिक सीटें मिलने वाली हैं।
महात्मा गाँधी के इस देश की राजधानी दिल्ली की नाक के नीचे बसे ग़ाज़ियाबाद ज़िले के एक गाँव डासना में स्थित देवी के मंदिर में पानी की प्यास बुझाने के लिए प्रवेश करने वाले एक मासूम तरुण की ज़बरदस्त तरीक़े से पिटाई की जाती है।
म्यांमार में उथल-पुथल मची हुई है। सैन्य हुकूमत की तानाशाही के ख़िलाफ़ आंदोलनकारियों ने सड़कों को पाट रखा है। उन पर गोलियाँ चलाई जा रही हैं। डेढ़ सौ मारे जा चुके हैं। भारत से कोई प्रतिक्रिया क्यों नहीं है?
ममता ने कांग्रेस से अलग होकर ही टीएमसी बनाई थी और नंदीग्राम आंदोलन के ज़रिए ही तीन दशकों से चले आ रहे वामपंथियों के साम्राज्य को ध्वस्त किया था। इसलिए दोनों ही दलों की नाराज़गी ममता से है।
राहुल बार-बार आरोप लगा रहे हैं कि देश इस समय ‘अघोषित आपातकाल’ से गुजर रहा है। राहुल ने बिना साँस रोके और पानी का घूँट पीए अर्थशास्त्री कौशिक बसु के साथ हुए इंटरव्यू में कह दिया कि उनकी दादी द्वारा 1975 में लगाई गई इमरजेंसी एक ग़लती थी।
सरकार अगर अचानक घोषणा कर दे कि परिस्थितियाँ अनुकूल होने तक अथवा किन्हीं अन्य कारणों से विवादास्पद कृषि क़ानूनों को वापस लिया जा रहा है तो क्या होगा किसान आन्दोलन का?
किसान आंदोलन से जुड़ी कोई ‘टूलकिट’ जलवायु नेत्री ग्रेटा तनबर्ग (थनबर्ग) के साथ साझा करने और उसे सम्पादित करने के आरोप में दिशा रवि को दिल्ली पुलिस के साइबर प्रकोष्ठ ने बंगलुरू से हिरासत में ले लिया था।
राहुल गांधी जिस समय हिंदुत्व की छवि के प्रतीक प्रधानमंत्री पर लोकसभा में हमले की तैयारी कर रहे थे, प्रियंका संगम में डुबकी लगाकर हिंदुत्व का स्नान कर रही थीं, भगवान सूर्य की पूजा कर उन्हें अर्घ्य दे रही थीं।
क्या कोई आज़ादी दुनिया के सबसे बड़े राजनीतिक दल बीजेपी में उपलब्ध है? उसके अनुमानित 18 करोड़ सदस्यों में क्या कोई यह सवाल पूछने की हिम्मत कर सकता है कि पार्टी और सरकार हक़ीक़त में कैसे चल रही हैं?
किसान ‘कांट्रैक्ट फ़ार्मिंग’ से लड़ रहे हैं और पत्रकार ‘कांट्रैक्ट जर्नलिज़्म’ से। व्यवस्था ने हाथियों पर तो क़ाबू पा लिया है पर वह चींटियों से डर रही है। ये पत्रकार अपना काम सोशल मीडिया की मदद से कर रहे हैं।
डोनल्ड ट्रंप की जगह जो बाइडन के राष्ट्रपति बनने से भारत की नरेंद्र मोदी सरकार क्यों सहज नहीं है, सवाल यह भी है कि क्या उसे कमला हैरिस के उप-राष्ट्रपति बनने पर भी खुशी नहीं है?
छह महीने के राशन-पानी और चलित चौके-चक्की की तैयारी के साथ राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर पहुँचे किसान अपने धैर्य की पहली सरकारी परीक्षा में ही असफल हो गए हैं, क्या ऐसा मान लिया जाए?
बीस जनवरी, मंगलवार की रात लगभग सवा दस बजे जब भारत के नागरिक सोने की तैयारी कर रहे थे, वाशिंगटन में दिन के पौने बारह बज रहे थे। यही वह क्षण था जिसकी अमेरिका के करोड़ों नागरिक रात भर प्रतीक्षा कर रहे थे।
राजदीप यह भी कहते हैं कि राहुल गांधी के नेतृत्व में अंबानी-अडानी पर हमला काफ़ी पाखंडपूर्ण लगता है और यह भी कि आज देश के दो सबसे अमीर व्यापारिक समूहों को राजनीतिक विवाद से बचने में परेशानी हो रही है।
बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या ने कैपिटल हिल कांड के बाद डोनल्ड ट्रम्प का ट्विटर अकाउंट बंद किए जाने पर रोष जताया और कहा कि टेक कम्पनी का फ़ैसला लोकतंत्रों के लिए सजग होने का संकेत है। तो बड़ा ख़तरा कौन?