आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने हर मस्जिद में मंदिर ढूंढने की प्रवृत्ति पर चिंता जताई तो बदले में उन्हें अपने आसपास से गुर्राहटें सुनाई देने लगीं। बहुत से संत-महंतों ने संघ प्रमुख से दो-टूक कह दिया कि वो पूरे हिंदू समाज का नेता बनने की कोशिश ना करें। हिंदू राजनीति में यह एक अलग तरह की हलचल है। इस डेवलपमेंट के क्या मायने हैं, आइये बिंदुवार समझने की कोशिश करते हैं-
1. सबसे पहली बात ये है कि अपने कर्म से इतर धर्म, नैतिकता, अहिंसा आदि पर बीच-बीच में प्रवचन देते रहना संघ के शीर्ष नेतृत्व का पुराना शगल है। अगर आप थोड़ी मेहनत करें तो एक ही सवाल पर मोहन भागवत के बयानों के कई परस्पर विरोधी वर्जन ढूंढ सकते हैं। ये बयान इसलिए दिये जाते हैं कि ताकि समय और राजनीतिक जरूरतों के मुताबिक ये दावा किया जा सके कि संघ ये चाहता है अथवा संघ ये नहीं चाहता है।






















.jpeg&w=3840&q=75)

.jpeg&w=3840&q=75)

