22 मई 2004 को भारत के पास मौका था जब वह 24 अक्टूबर 2022 वाला इंग्लैंड बन चुका होता। लेकिन, 57 साल का भारतीय लोकतंत्र तब इस काबिल नहीं हो पाया था कि एक विदेशी मूल की महिला को प्रधानमंत्री स्वीकार कर सके। जाहिर है वह मौका हाथ से निकल गया।
मजबूत लोकतंत्र ही चुन सकता है विदेशी मूल का प्रधानमंत्री
- विश्लेषण
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- 26 Oct, 2022

ऋषि सुनक के प्रधानमंत्री बनने की घटना के बाद क्या ऐसा लगता है कि इंग्लैंड में लोकतंत्र मजबूत और उदार हो रहा है जबकि भारत का लोकतंत्र कमजोर और लाचार नज़र आ रहा है?
मौका इंग्लैंड के पास भी था कि वह 24 अक्टूबर 2022 की तारीख को भारत में बहुचर्चित 22 मई 2004 की तारीख में बदल देता। मगर, इंग्लैंड का लोकतंत्र भारत से मजबूत निकला जो नस्लवादी दकियानूसी विचारों का त्याग करने का साहस दिखला सका।
2004 में भारत ने गंवाया मौक़ा
भारत ने 22 मई 2004 को मौका गंवाया था। तब दुनिया के सामने इटली मूल की भारतीय बहू प्रधानमंत्री हो सकती थीं। सोनिया गांधी के ‘त्याग’ पर न जाएं। यह ‘त्याग’ किसी ‘हठ’ का सम्मान करने के लिए था। ‘हठ’ के सामने झुकी थी सियासत। इस ‘हठ’ का रोग और उसका संक्रमण बीजेपी से कांग्रेस की ओर भी हुआ था। कांग्रेस का अंग-भंग हुआ, जो बाद में सियासत की आईसीयू में एक ऑपरेशन से जुड़कर सही भी हुआ। एऩसीपी हिस्सा बन गयी यूपीए की।