बीजेपी तथ्यों को तोड़-मरोड़कर और बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत करने में माहिर है। वह हार को जीत और जीत को हार बता सकती है। सामान्य जीत को विश्वविजय के रूप में प्रस्तुत कर सकती है। उसके नेता और प्रवक्ता हर घड़ी इसी काम में लगे रहते हैं। यह उसकी प्रचारात्मक रणनीति का हिस्सा है। इससे जनता को भरमाती है और आने वाले मुक़ाबलों के लिए माहौल भी बनाए रखती है। बिहार के चुनाव परिणाम आने के बाद आए उनके बयानों को देखिए और चुनावी आँकड़ों से उनका मिलान करिए, आपकी समझ में आ जाएगा।
बिहार में बीजेपी की जीत के ढिंढोरे का यह है सच?
- बिहार
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- 13 Nov, 2020

बीजेपी नेता बिहार की उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ाकर बताने और ऐसा प्रभाव पैदा करने में कोई कसर बाक़ी नहीं रख रहे। अब देखिए कि 2015 की तुलना में कुल 21 सीटें ज़्यादा जीतने के बाद वे ऐसा जता रहे हों मानो अपने दम पर सरकार बनाने जा रहे हों। वे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की जीत को ऐसे पेश कर रहे हैं मानो वह बीजेपी की जीत हो, लेकिन हक़ीक़त कुछ और है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बयान भी इसकी मिसाल है। मोदी ने बिहार की जीत को ऐतिहासिक बताते हुए कहा है कि बीजेपी तीन बार से सत्ता में रहने के बावजूद ज़्यादा सीटें जीतने में कामयाब रही। लेकिन सचाई यह है कि बीजेपी 2015 में चुनाव हार गई थी यानी वह तीन बार से लगातार सत्ता में थी ही नहीं। उस चुनाव में महागठबंधन भारी बहुमत से जीता था। इसलिए उसे जोड़कर बताना तथ्यात्मक रूप से ग़लत था। वह तो बाद में तीसरी सरकार का हिस्सा बनी। वह भी साढ़े तीन साल के लिए यानी एंटी इनकंबेंसी उसके ख़िलाफ़ नहीं थी। चूँकि सरकार का नेतृत्व नीतीश कुमार कर रहे थे और जेडीयू उनकी पार्टी थी इसलिए सत्ता विरोधी लहर का सबसे ज़्यादा दुष्प्रभाव भी उन्होंने झेला।