अभिनेता अक्षय कुमार और निर्देशक चंद्रप्रकाश द्विवेदी अपनी फ़िल्म सम्राट पृथ्वीराज आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और हिंदू हृदय सम्राट योगी आदित्यनाथ को दिखाकर बचा नहीं पाएँगे। लगभग 300 करोड़ की लागत वाली फिल्म ने पहले दिन मात्र 10 करोड़ की कमाई की है, इससे हाल का अंदाज़ा लगा लीजिये। अगर साक्षात् प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, तमाम केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के तमाम नेता इसका उसी तरह प्रचार करें जैसे कश्मीर फाइल्स का किया था, तो शायद कुछ लोग और देख लें मगर तब भी नुक़सान की भरपाई होना बहुत मुश्किल लग रहा है।
मैं जब फिल्म देख रहा था तो सिनेमाहॉल में बमुश्किल 30-35 लोग बैठे थे। कुल एक बार सिर्फ एक व्यक्ति ने इंटरवल के बाद एक संवाद पर ताली बजाई जब अक्षय कुमार नारी मुक्ति पर डायरेक्टर साहब की समझ से बहुत ज़ोरदार लिखी गई तक़रीर कर रहे थे। संवाद भी तो चंद्रप्रकाश द्विवेदी जी ने ही लिखे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार ने फिल्म को टैक्स फ़्री कर दिया है लेकिन टिकट खिड़की पर बैठी लड़की ने टिकट के दाम के बारे में पूछने पर सपाट लहजे में कहा - सर अभी हमारे पास ऐसा कोई सर्कुलर नहीं आया है।
फिल्म शुरुआत में और आख़िर में असर छोड़ती है। हालांकि दोनों बार ऑस्कर विजेता फिल्म ग्लैडियेटर की झलक आती रही। अब न तो चंद्रप्रकाश द्विवेदी रिडले स्कॉट हैं और अक्षय कुमार भी रसेल क्रो नहीं हैं। फिर भी इन दोनों मौक़ों पर अक्षय का अभिनय अच्छा है क्योंकि ये प्रमुखत: एक्शन सीन हैं।
पूरी फिल्म फ़्लैशबैक में है। डिस्क्लेमर में यह साफ कर दिया गया है कि यह फिल्म मुख्यत: चंदबरदाई के पृथ्वीराज रासो पर आधारित है। फिल्म के शुरुआती हिस्से में पृथ्वीराज का बखान करते हुए एक गाना चलता है जिसमें उनकी तुलना गोकुल के मोहन और कुरुक्षेत्र के अर्जुन से की गई है।
प्रेमी युगल पृथ्वीराज और संयोगिता की भूमिका में अक्षय कुमार और मानुषी छिल्लर नहीं जमते। दोनों के बीच परदे पर कोई केमिस्ट्री नहीं दिखती। अक्षय कुमार जीतेंद्र स्कूल ऑफ़ एक्टिंग के अभिनेता हैं। पृथ्वीराज जैसे ऐतिहासिक चरित्र के निर्वाह में वह असर नहीं छोड़ पाए। चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने उनके लिए ग़ालिब के दौर की उर्दू फ़ारसी वाले संवाद क्यों लिखे यह समझ नहीं आया। उनके मुकाबले मानव विज ने मोहम्मद गौरी के किरदार में अच्छा काम किया है। अब तक उड़ता पंजाब, गुंजन सक्सेना और अंधाधुन जैसी फिल्मों में छोटी छोटी भूमिकाओं में दिखते रहे मानव विज को पहली बार एक बड़ा ऐतिहासिक किरदार निभाने का मौका मिला है। हालांकि उनको भी फुटेज ज्यादा नहीं मिला है।
मानुषी छिल्लर ने पहली ही फिल्म में आत्मविश्वास ज़रूर दिखाया है, संवाद अदायगी ठीक है, जौहर से पहले उन पर फ़िल्माया गया योद्धा वाला गीत अच्छा है लेकिन संयोगिता की भूमिका के लिए जिस कमसिनी और सुंदरता की कल्पना की जा सकती है, उसका उनमें अभाव दिखता है। मौजूदा अभिनेत्रियों में कियारा अडवानी शायद बेहतर चुनाव होतीं। रनवीर सिंह शायद बेहतर पृथ्वीराज होते।
चंद बरदाई की भूमिका में सोनू सूद का काम अच्छा है। जयचंद के किरदार में आशुतोष राणा और उनकी पत्नी की भूमिका में साक्षी तंवर का अभिनय भी अच्छा है। रंगमंच और फिल्मों के मंझे हुए कलाकार राजेंद्र गुप्ता और मनोज जोशी एक-दो सीन वाली भूमिकाओं में भी अपना दमख़म दिखा देते हैं।
छायांकन अच्छा है। भव्यता भी है। गीत वरुण ग्रोवर ने लिखे हैं, औसत संगीत की वजह से याद नहीं रह जाते।
उदार होकर फिल्म की सर्वश्रेष्ठ प्रशंसा में भी यही कहा जा सकता है कि यह कुल मिला कर औसत ही है।
(अमिताभ की फ़ेसबुक वाल से)
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