गुजरात विधानसभा चुनाव में ऑल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमीन या एआईएमआईएम के जो दर्जन उम्मीदवार खडे़ किये गये हैं। क्या वे भारतीय जनता पार्टी की मदद के लिए हैं और क्या इससे भाजपा की राह आसान हो जाएगी? यह एक ऐसा सवाल है जो लगभग हर चुनाव में एआईएमआईएम के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी से पूछा जाता है। सवाल से अधिक यह एक ऐसा आरोप है जो मुख्यतः भाजपा विरोधी दलों और चिंतकों द्वारा ओवैसी पर लगाया जाता है।

गुजरात विधानसभा चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने उन सीटों पर ही उम्मीदवार उतारे हैं जहाँ पर मुसलिम आबादी काफी संख्या में है। तो सवाल है कि वह चुनाव किसके ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं और किसको इसका फायदा होगा?
उदाहरण के लिए बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में जब एआईएमआईएम को पांच सीटें मिली थीं और काँटे की टक्कर में नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए ने महागठबंधन को हराया था, तब भी यही कहा गया था कि अगर ओवैसी चुनाव नहीं लड़ते तो तेजस्वी यादव बिहार में मुख्यमंत्री होते। इस दलील के साथ दिलचस्प पहलू यह है कि ऐसी ख़बरें आयी थीं कि अगर तेजस्वी यादव मुकेश सहनी की वीआईपी और जीतन राम मांझी के हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा के आठ विधायकों को अपने साथ कर लें तो वे एआईएमआईएम के पांच विधायकों का समर्थन लेकर सरकार बना सकते हैं।