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आगरा का नाम बदलकर किससे बदला लेना चाहती है सरकार?

आगरा के पुराने नामों को क्यों ढूँढा जा रहा है? क्यों एक विश्वविद्यालय को यह ज़िम्मेदारी दी गई है कि वह इसके पुराने नामों के पुख्ता सबूत ढूँढे? क्या सरकार पुराने नामों में इस शहर के नए नाम का भविष्य ढूँढ रही है? इलाहाबाद और फ़ैज़ाबाद के बाद अब क्या आगरा के नाम बदले जाने की बारी है? और क्या नाम बदलने से इतिहास बदल जाएगा?

दरअसल, आगरा के डॉ. भीमराव आम्बेडकर विश्वविद्यालय (बीएयू) को आगरा के प्राचीन समय के नामों को ढूँढने के लिए निर्देश दिया गया है। ज़िला प्रशासन ने विश्वविद्यालय से यह भी कहा है कि यदि कुछ पुख्ता सबूत हैं तो उन्हें ढूँढा जाए। अब विश्वविद्यालय ने इतिहास विभाग को यह काम सौंप दिया है।

योगी आदित्यनाथ कई बार सार्वजनिक मंचों से दावा कर चुके हैं जिन शहरों-कस्बों के नाम पहले हिंदू नाम से जुड़े थे और बाद में उन्हें मुसलिमों के नाम पर कर दिया गया है उन्हें बदला जाएगा। वह यह बात उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले भी करते थे और कई बार चुनाव जीतने के बाद भी कर चुके हैं।

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यही कारण है कि योगी सरकार बनने के बाद से लगातार शहरों के नाम बदले जाने की माँग उठती रही है। इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज और फ़ैज़ाबाद का अयोध्या किया जा चुका है। मुग़लसराय रेलवे स्टेशन का नाम भी पंडित दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर कर दिया गया है। वैसे कई शहरों के नाम बदलने की माँग की जा रही है लेकिन जो बड़े शहर हैं उनमें आगरा, मुज़फ़्फ़रनगर और सुल्तानपुर के नाम हैं। 2018 में आगरा नॉर्थ के विधायक जगन प्रसाद गर्ग ने आगरा का नाम अग्रवन या अग्रवाल करने की माँग की थी। मेरठ के विधायक संगीत सोम भी मुज़फ़्फ़रनगर का नाम लक्ष्मीनगर करने की माँग करते रहे हैं। पिछले साल ही अगस्त में बीजेपी विधायक देवमणि द्विवेदी ने विधानसभा में एक प्रस्ताव पेश किया था कि सुल्तानपुर का नाम कुशभवनपुर रखा जाए।

अब सवाल उठता है कि आगरा के पुराने नाम ढूँढने के लिए इतिहासकारों को जो ज़िम्मेदारी दी गई है उसकी क्या संभावनाएँ हैं? अभी तक जो साक्ष्य उपलब्ध हैं वे साफ़ कहते हैं कि इस पर ज़्यादा शोध नहीं हुआ है। सरकारी वेबसाइटों पर इस बारे में ज़रूर कुछ लिखा गया है और महाभारत काल का ज़िक्र किया गया है। आगरा ज़िला प्रशासन की वेबसाइट के अनुसार, ‘महाभारत काल में आगरा को 'अग्रबन' या स्वर्ग कहा जाता था। यह आमतौर पर स्वीकार किया जाता है कि आगरा महाभारत के समय से एक प्राचीन शहर था और फिर भी दिल्ली सल्तनत के मुसलिम शासक सुल्तान सिकंदर लोदी ने वर्ष 1504 में आगरा की स्थापना की। सुल्तान की मृत्यु के बाद शहर उनके बेटे सुल्तान इब्राहिम लोदी को मिल गया। उन्होंने 1526 में लड़ी गई पानीपत की पहली लड़ाई में मुग़ल बादशाह (बादशाह) बब्बर से लड़ाई हार जाने तक आगरा से अपनी सल्तनत पर राज किया। इसके बाद मुग़लों ने इस शहर को और सँवारा...।’

यूपी पर्यटन विभाग की वेबसाइट पर आगरा के बारे में बताया गया है कि महाकाव्य ‘महाभारत’ में आगरा क्षेत्र को ‘अग्रबन’ (भगवान कृष्ण की भूमि या ब्रज भूमि का अभिन्न अंग) के रूप में बताया गया है।

इस पर्यटन विभाग की वेबसाइट के अनुसार, ‘इसके बाद का भारत का इतिहास आगरा की उत्पति 1475 ईसवी में दिखाता है जब राजा बादल सिंह का शासन था। आगरा लोगों की नज़र में अफ़ग़ान बादशाह सिकंदर लोदी के दौरान आया। लोदी ने आगरा को अपने राज्य की राजधानी बनाया था। बाद में 1526 ईसवी में मुग़ल बादशाह बाबर ने इस शहर को नया रूप दिया।'

क्या कहते हैं इतिहास के प्रोफ़ेसर?

'द टाइम्स ऑफ़ इंडिया' की रिपोर्ट के अनुसार, बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास के प्रोफ़ेसर एमएस शुक्ला कहते हैं, “महाभारत में 'अग्रबन' का ज़िक्र है जहाँ 'वन' का अर्थ है जंगल। हो सकता है कि वहाँ जंगल रहा हो। सिकंदर लोदी के आने तक वहाँ का कोई भी ऐतिहासिक रिकॉर्ड नहीं है। लोदी के शासन काल के दौरान इसको मध्यकालीन शहर के तौर पर जाना जाता है। उस वक़्त के दौरान की और जानकारी के लिए शोध किए जाने की ज़रूरत है।”

‘शाह’ फ़ारसी शब्द: इरफ़ान हबीब

इस जद्दोजहद के बाद अब यदि आगरा का नाम बदल भी दिया जाता है तो इसको इतिहासकार किस नज़रिए से देखते हैं। एक के बाद एक शहरों के नाम बदले जाने से ख़्यातनाम इतिहासकार भी नाराज़गी जताते रहे हैं। उनका मानना रहा है कि नाम बदलने से इतिहास को नहीं मिटाया जा सकता है। जब 2018 में नाम बदलने की चर्चा ज़ोर-शोर से हुई थी तब भी ख़्यातनाम इतिहासकार इरफ़ान हबीब ने कहा था कि बीजेपी को सबसे पहले अपने पार्टी के प्रमुख अमित शाह का नाम बदलना चाहिए। उन्होंने कहा था, 'उनका सरनेम 'शाह' फ़ारसी शब्द है, न कि गुजराती।' 'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' की रिपोर्ट के अनुसार, अलीगढ़ मुसलिम यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर एमिरिटस हबीब ने कहा था, 'यहाँ तक कि 'गुजरात' भी फ़ारसी शब्द है। पहले इसे गुरजरातरा कहा जाता था। उन्हें इसे भी बदलना चाहिए।' उन्होंने कहा था, 'बीजेपी सरकार का नाम बदलने का यह रवैया आरएसएस की हिंदुत्व नीति की राह पर दिखती है। यह बुल्कुल वैसा ही है जैसे पाकिस्तान में जो इसलामिक नहीं है उसे हटा दिया जाता है...।' उनकी यह प्रतिक्रिया 2018 में बीजेपी नेता जगन प्रसाद गर्ग की उस माँग पर आई थी जिसमें उन्होंने आगरा का नाम बदलने की माँग की थी। 

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होटल उद्योग फ़ायदे या नुक़सान में?

पूरे उत्तर प्रदेश में बीजेपी हमेशा यह कहते हुए अपनी बात को सही साबित करने की कोशिश करती रही है कि वह सिर्फ़ उनके पुराने नामों को ही फिर से ला रही है और तोड़-मरोड़कर पेश किए गए इतिहास को सही कर रही है। लेकिन इससे टूरिज़्म उद्योग को भी काफ़ी नुक़सान हो सकता है।

आगरा का नाम बदलने को लेकर बीजेपी के नेता और इनके समर्थक कुछ भी कहें, लेकिन आगरा और इससे सटे फतेहपुर सिकरी में टूरिज़्म से जुड़े रहे लोग नाम बदले जाने से सशंकित हैं। उनको इससे टूरिज़्म के बुरी तरह से प्रभावित होने की आशंका है। यही बात पिछले साल भी वे कह रहे थे जब आगरा का नाम बदले जाने की चर्चा हुई थी। 'द डेली रिव्यू' नाम की वेबसाइट ने पिछले साल एक रिपोर्ट छापी थी। इसमें तब आगरा टूरिज़्म डवलपमेंट फ़ाउंडेशन के अध्यक्ष संदीप अरोड़ा का बयान छपा था। उन्होंने कहा था, 'आगरा के नाम से ताज महल का बाज़ार बनाने में हमें कई साल लगे हैं। अब हम कहेंगे हम अग्रवाल से हैं? रातोंरात हमारी पूरी मेहनत बेकार चली जाएगी। यह मेरे लिए नोटबंदी जैसा लगता है।' तब उन्होंने कहा था, 'यदि नाम बदलने से विकास होता है तो हमें पीएम के आवास को 7 रेस कोर्स रोड से इसे ह्वाइट हाउस कर देना चाहिए और इससे रुपये और डॉलर बराबर होंगे।' आगरा होटल एसोसिएशन के सदस्य शैलेंद्र गर्ग ने कहा था कि यह अव्याहारिक है। ट्रेडर्स एसोसिएशन ने कहा था कि इससे बड़ा आर्थिक नुक़सान होगा। ऐसे में इस नुक़सान की भरपाई कैसे होगी?
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अमित कुमार सिंह
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