मोहन भागवत
भागवत ने कहा- “असंतोष को हवा देकर, उस तत्व को समाज के बाकी हिस्सों से अलग कर दिया जाता है, और व्यवस्था के खिलाफ आक्रामक बना दिया जाता है। समाज में दोष ढूँढ़कर सीधे-सीधे झगड़े पैदा किये जाते हैं। व्यवस्था, कानून, शासन, प्रशासन आदि के प्रति अविश्वास और नफरत को बढ़ाकर अराजकता और भय का माहौल बनाया जाता है। इससे उस देश पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना आसान हो जाता है।” यानी भागवत के इस बयान के हिसाब से देश में जो लोग सरकार के खिलाफ अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, वे इसी श्रेणी में आते हैं। भागवत के हिसाब से बेरोजगारों का आंदोलन भी इसी का हिस्सा है।
बहरहाल, आरएसएस प्रमुख ने कहा कि स्वस्थ और सक्षम समाज के लिए पहली शर्त सामाजिक सद्भाव और समाज के विभिन्न वर्गों के बीच आपसी सद्भावना है। उन्होंने कहा, ''केवल कुछ प्रतीकात्मक कार्यक्रम आयोजित करने से यह काम पूरा नहीं हो सकता। समाज के सभी वर्गों में व्यक्तियों और परिवारों के बीच मित्रता होनी चाहिए। मैं जहां भी जाता हूं और जहां भी काम करता हूं, हर तरह के लोगों के बीच मेरे दोस्त होने चाहिए। भाषाएं विविध हो सकती हैं, संस्कृतियां विविध हो सकती हैं, भोजन विविध हो सकता है, लेकिन व्यक्तियों और परिवारों की यह दोस्ती समाज में सद्भाव लाएगी।”