सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि बिलों को मंजूरी देने में देरी के कुछ मामलों के आधार पर आँख बंद कर गवर्नरों और राष्ट्रपति के लिए कोई निश्चित समयसीमा तय करना ठीक नहीं होगा। यह बात मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच ने कही। यह मामला राष्ट्रपति द्वारा प्रेसिडेंशियल रेफ़रेंस के माध्यम से मांगी गई सलाह से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से पूछा है कि क्या बिलों पर फैसला लेने के लिए गवर्नरों और राष्ट्रपति को कोई समयसीमा दी जा सकती है, जबकि संविधान में ऐसी कोई समयसीमा का जिक्र नहीं है।
बिलों में देरी के कुछ मामले गवर्नर, राष्ट्रपति पर समयसीमा लादने का कारण नहीं बन सकते: SC
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- 2 Sep, 2025
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कुछ मामलों में बिलों में देरी गवर्नर और राष्ट्रपति पर समयसीमा लादने का आधार नहीं बन सकती। जानें कोर्ट की अहम टिप्पणी के मायने क्या।

यह पूरा मामला अप्रैल 2025 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से शुरू हुआ। उस फैसले में कोर्ट ने कहा था कि तमिलनाडु के गवर्नर ने 10 बिलों को राष्ट्रपति के पास भेजकर गलती की थी। कोर्ट ने यह भी कहा था कि गवर्नरों को बिल पर हां या ना कहने या उसे राष्ट्रपति के पास भेजने के लिए एक महीने का समय चाहिए। अगर गवर्नर मंत्रिपरिषद की सलाह के खिलाफ फैसला लेता है तो उसे तीन महीने में कारण बताना होगा। राष्ट्रपति को भी बिल पर तीन महीने में फैसला लेना होगा।