सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि बिलों को मंजूरी देने में देरी के कुछ मामलों के आधार पर आँख बंद कर गवर्नरों और राष्ट्रपति के लिए कोई निश्चित समयसीमा तय करना ठीक नहीं होगा। यह बात मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अगुवाई वाली पांच जजों की बेंच ने कही। यह मामला राष्ट्रपति द्वारा प्रेसिडेंशियल रेफ़रेंस के माध्यम से मांगी गई सलाह से जुड़ा है, जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से पूछा है कि क्या बिलों पर फैसला लेने के लिए गवर्नरों और राष्ट्रपति को कोई समयसीमा दी जा सकती है, जबकि संविधान में ऐसी कोई समयसीमा का जिक्र नहीं है।