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हिजाबः 'अदालत धर्म के मामलों में ज्यादा कानूनदां नहीं बने'

हिजाब पर सुप्रीम कोर्ट में बुधवार 14 सितंबर को जोरदार बहस हुई। वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन समेत कई वकीलों ने बहस में हिस्सा लिया। धवन ने अपने तर्कों के जरिए धारदार तर्क रखे। कर्नाटक सरकार ने राज्य के शिक्षण संस्थाओं में मुस्लिम छात्राओं के हिजाब पहनकर आने पर रोक लगा दी। मुस्लिम छात्राओं ने इसे कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के आदेश को सही ठहराया। छात्राओं ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है।

बहस की शुरुआत करते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि पूरे देश में अधिकांश मुस्लिम महिलाएं हिजाब पहनती हैं। अदालत को यह देखना चाहिए क्या वास्तव में यह प्रथा प्रचलित है या नहीं। अदालत को धार्मिक मामलों में कानून नहीं झाड़ना चाहिए। पूरी दुनिया में हिजाब को वैध माना जाता है। 

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अदालत ने वकील धवन से पूछा कि क्या हिजाब इस्लाम में आवश्यक प्रेक्टिस है, इस पर धवन ने कहा कि हिजाब पूरे भारत में पहना जाता है। यह एक आवश्यक इस्लामिक प्रैक्टिस है। बिजॉय एमेनुएल केस में अदालत ने ही तय किया था कि अगर ये साबित हो जाए कि कोई प्रैक्टिस सही और स्वीकार्य है तो उसकी अनुमति दी जा सकती है। और मुस्लिम महिलाओं के हिजाब के बारे में तो सभी जानते हैं। धवन ने कहा कि मामला दरअसल यह है कि हिजाब के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है। कर्नाटक सरकार के आदेश का कोई आधार नहीं है। यह सिर्फ मुस्लिम महिलाओं को टारगेट करने के लिए ऐसा किया जा रहा है।   

अदालत को यह जांचना होगा कि जो प्रथा है वो प्रचलित है या नहीं, वो प्रथा कहीं दुर्भावनापूर्ण तो नहीं है। किसी बाहरी संस्था या निकाय यह कहने का कोई अधिकार नहीं है कि ये चीज धर्म का आवश्यक अंग नहीं है। जजों को धर्म के मामले में कानूनदां नहीं बनना चाहिए। 


- राजीव धवन, वरिष्ठ वकील, बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में हिजाब पर सुनवाई के दौरान

धवन ने कहा कि केरल हाईकोर्ट ने आखिर मुस्लिम महिलाओं की धार्मिक प्रैक्टिस के आधार पर ही तो हिजाब को मान्यता दी। केरल हाईकोर्ट ने इसे आवश्यक माना लेकिन कर्नाटक हाईकोर्ट ने नहीं माना। लेकिन किसी बाहरी संस्था को ऐसे मामलों में नहीं पड़ना चाहिए। उसे उसकी स्वीकार्यता देखना होगी। हिजाब पहनने वाले के साथ लिंग और धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। यह उसकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हिस्सा है। 

बीच में जस्टिस हेमंत गुप्ता ने वकील राजीव धवन को टोकने की कोशिश की। जस्टिस गुप्ता ने कहा कि आप तथ्यों पर बात करें। वरिष्ठ वकील ने जवाब दिया - मैं भेदभाव पर बात कर रहा हूं।

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याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील हुजैफा अहमदी ने भी दलीलें पेश कीं।  अहमदी ने तर्क दिया कि स्कूलों में हिजाब पहनने के खिलाफ लागू किया गया शासनादेश उस समुदाय की संस्कृति को गलत समझता है और इसे विविधता के विरोधी के रूप में बताकर गुमराह करता है। उन्होंने कहा कि एकरूपता और अनुशासन की विविधता को प्रोत्साहित करने के लिए हम जिस "वैध राज्य हित" को कहते हैं, यह आदेश उसका भी उल्लंघन करता है। उन्होंने कहा कि स्कूलों में हिजाब पर रोक लगाकर, राज्य ने मुस्लिम छात्राओं को स्कूलों से बाहर कर दिया है। वो मुस्लिम लड़कियां शिक्षा पाने से वंचित रह जाएंगी।

उन्होंने तर्क दिया कि अगर यह मान भी लिया जाए कि कि हिजाब एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है, तो यह संविधान के अनुच्छेद 29 (1) के तहत संरक्षित सांस्कृतिक प्रथा तो जरूर होगी। अगर किसी को हिजाब के नाम पर उकसाया भी जा रहा है, तो राज्य की प्राथमिकता क्या होना चाहिए - शिक्षा या फिर हिजाब विरोधियों का समर्थन? क्या हिजाब से इतना नुकसान हो रहा है कि आप इसे प्रतिबंधित करके लड़कियों को शिक्षा से वंचित कर दें।
सुनवाई के दौरान, जजों ने यह भी चर्चा की कि लड़कियों की ड्रॉप आउट दर (स्कूल में पढ़ाई छोड़ने की दर) बहुत अधिक है, लेकिन कर्नाटक हाईकोर्ट के सामने यह तर्क नहीं दिया गया। जस्टिस धूलिया ने कहा, "हाईकोर्ट के सामने आपने सिर्फ आवश्यक धार्मिक प्रथा को उठाया था।"

जस्टिस धूलिया ने तब अहमदी से पूछा कि क्या उनके पास स्कूल छोड़ने वाले छात्रों के प्रामाणिक आंकड़े हैं। अहमदी ने अदालत को सूचित किया कि उनके पास उपलब्ध जानकारी के अनुसार, 17,000 मुस्लिम छात्राएं परीक्षा नहीं दे पाईं।

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क़मर वहीद नक़वी
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