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फाइल फोटो

जाने किन नियमों के आधार पर सांसदों को कर दिया जाता है निलंबित 

आप सांसद राघव चड्ढा को शुक्रवार को राज्यसभा से तब तक के लिए निलंबित कर दिया गया है जब तक कि विशेषाधिकार समिति उनके मामले में फ़ैसला न दे दे। राघव चड्ढा को 'विशेषाधिकार के उल्लंघन' के लिए राज्यसभा से निलंबित किया गया है। उनके साथ ही पूर्व से निलंबित चल रहे आप नेता संजय सिंह का निलंबन भी बढ़ा दिया गया है। इस मामले में राज्यसभा सभापति ने शुक्रवार को इसकी घोषणा की है।
वहीं दूसरी ओर गुरुवार को लोकसभा में पेश हुए अविश्वास प्रस्ताव के दौरान कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी को निलंबित कर दिया गया था। इनका निलंबन तब तक जारी रहेगा जब कि विशेषाधिकार समिति इनके खिलाफ रिपोर्ट नहीं सौंप  देती है। भाजपा नेता प्रह्लाद जोशी ने अधीर रंजन पर संसदीय कार्यवाही में बाधा पैदा करने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अमर्यादित टिप्पणी करने का आरोप लगाते हुए निलंबन का प्रस्ताव पेश किया था। जिसे स्वीकार कर लोकसभा अध्यक्ष ने उन्हें निलंबित कर दिया था। 
ऐसे में सवाल उठता है कि किन नियमों के तहत लोकसभा के अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति सांसदों को निलंबित कर सकते हैं। इन नियमों का इस्तेमाल कर ही सांसदों को सस्पेंड हर दौर में किया जाता रहा है। सांसदों को सस्पेंड या निलंबित करने का कारण अक्सर ही यह बताया जाता है कि उन्होंने सदन के कामकाज में  व्यावधान पैदा किया था या उनका आचरण गलत था। इसके आधार पर सांसद सस्पेंड कर दिए जाते हैं। 

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सांसद सदन में क्यों पैदा करते हैं व्यावधान 

सांसद चाहे वह राज्यसभा के हो या लोकसभा के समय-समय पर व्यवधान पैदा करते रहते हैं। अक्सर ही विपक्ष के नेताओं को व्यवधान पैदा करने के आरोप में निलंबित कर दिया जाता है। निलंबन के लिए चार मुख्य कारण माना जाता है जो कि निम्न हैं। 
  1. सांसदों को महत्वपूर्ण मुद्दे उठाने के लिए पर्याप्त समय नहीं मिलना।
  2. सरकार का गैर जिम्मेदार रवैया जिसने जवाबी कार्रवाई बंद कर दी हो।
  3. कई बार राजनीतिक या प्रचार कारणों से पार्टियां जानबूझकर अशांति पैदा करती है
  4. संसदीय कार्यवाही में बाधा डालने वाले सांसदों के खिलाफ तत्काल कार्रवाई का नहीं होना  

सांसदों को कौन निलंबित कर सकता है?

सामान्य सिद्धांत यह है कि सदन के संचालन के लिए व्यवस्था बनाए रखना पीठासीन अधिकारी का जिम्मेदारी है। ये पीठासीन अधिकारी लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति होते है। पीठासीन अधिकारी का कर्तव्य है कि वे सदन को सुचारू रूप से चलाये। इसे सुनिश्चित करने के लिए कि सदन की कार्यवाही उचित तरीके से हो सके लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति को कई अधिकार दिए गए हैंं। इसी में से एक अधिकार है कि वे किसी सदस्य को सदन से बाहर जाने के लिए मजबूर कर सकते हैं या एक अवधि के लिए सस्पेंड कर सकते हैं। इसके लिए कुछ नियम बने हुए हैं जिसके मुताबिक संसद सदस्यों के खिलाफ कार्यवाई की जाती है। 
संसद की कार्यवाही उसके रूल बुक के हिसाब से चलती है। लोकसभा में सांसदों के व्यवहार या आचरण को नियंत्रित करने और कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने के लिए नियम 373 और 374 का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं राज्य सभा में 255 और 256 के तहत सांसदों को निलंबित किया जा सकता है। अगर सांसद सदन के कामकाज में बाधा डालते हैं या अमर्यादित टिप्पणी करते हैं तो उन्हें इन नियमों के आधार पर सस्पेंड या निलंबित किया जा सकता है।
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क्या है लोकसभा से सांसदों के निलंबित करने का नियम 

नियम 373: यदि लोकसभा अध्यक्ष को सदन के किसी सदस्य का आचरण अव्यवस्थित लगता है तो वह उस सदस्य को तुरंत सदन से बाहर जाने का निर्देश दे सकता है। जिन सदस्यों को ऐसा निर्देश दिया जाता है  वे तुरंत सदन से बाहर चले जाएंगे। वे दिन की शेष बैठक के दौरान अनुपस्थित रहेंगे।

नियम 374: लोकसभा का कोई सदस्य जो अध्यक्ष के अधिकार की अवहेलना करता है या लगातार और जानबूझकर सदन के कामकाज में बाधा डालकर सदन के नियमों का दुरुपयोग करता है। ऐसे सदस्य को सत्र के शेष भाग से अधिक की अवधि के लिए सदन से निलंबित कर दिया जाएगा। इस नियम के तहत निलंबित सदस्य को तुरंत सदन के परिसर से हट जाना होगा।यदि कोई सदस्य लोकसभा अध्यक्ष के आसन के निकट आकर या सभा में नारे लगाकर या अन्य प्रकार से लोकसभा की कार्यवाही में बाधा डालकर जान बूझकर सभा के नियमों का उल्लंघन करते अव्यवस्था उत्पन्न करता है तो उस पर इस नियम के तहत कार्रवाई की जाती है। लोकसभा अध्यक्ष द्वारा उसका नाम लिए जाने पर वह लोकसभा की पांच बैठकों या सत्र की शेष अवधि के लिए (जो भी कम हो) स्वतः निलंबित हो जाता है। 

नियम 374 ए:  इस नियम के मुताबिक सदन के नियमों का घोर उल्लंघन या गंभीर आरोपों के मामले में, लोकसभा अध्यक्ष द्वारा नामित किए जाने पर, सदस्य को लगातार पांच बैठकों या सत्र के शेष भाग, जो भी कम हो, के लिए सदन की सेवा से स्वचालित रूप से निलंबित कर दिया जाता है।

जाने राज्यसभा से निलंबित करने का क्या है नियम 

नियम 255 : राज्य सभा की प्रक्रिया के नियम 255 के तहत, सदन का पीठासीन अधिकारी यानी सभापति सदन के सदस्य का निलंबन लागू कर सकता है। इस नियम के अनुसार सभापति किसी भी सदस्य को निर्देश दे सकता है जिसका आचरण उसकी राय में सही नहीं था या अव्यवस्थित था। 

अगर सभापति को लगता है कि किसी सदस्य को व्यवहार घोर अव्यवस्थापूर्ण है तो वो उसे राज्य सभा से चले जाने का निर्देश दे सकता है। इस नियम के तहत निलंबन केवल उसी दिन के लिए लागू रहेगा। निलंबित सदस्य को उस दिन सदन से बाहर रहना होगा। निलंबन को राज्यसभा के सभापति की मर्जी से वापस लिया जा सकता है।  निलंबित सदस्यों के माफी मांगने पर भी इसे वापस लिया जा सकता है। वैसे संस्पेंशन के खिलाफ प्रस्ताव भी सदन में लाया जा सकता है। अगर ये पास हो गया तो निलंबन खुद हट जाएगा।
नियम 256 : इस नियम के तहत राज्य सभा के सभापति को अगर आवश्यक समझे तो वह उस सदस्य को निलंबित कर सकते हैं, जो बार-बार और जानबूझकर राज्य सभा के कार्य में बाधा डालते हैं। सभापति ऐसे सदस्य को राज्य सभा की सेवा से ऐसी अवधि तक निलम्बित कर सकता है जबतक कि सत्र का अवसान नहीं होता या सत्र के कुछ दिनों तक भी ये लागू रह सकता है।
इस नियम के तहत निलंबन होते ही राज्यसभा सदस्य को तुरंत सदन से बाहर जाना होगा।राज्यसभा के सभापति अगर चाहे तो निलंबन को खत्म कर सकते हैं। निलंबित सदस्यों के माफी मांगने पर इसे वापस लिया जा सकता है। वैसे संस्पेंशन के खिलाफ प्रस्ताव भी सदन में लाया जा सकता है। अगर ये पास हो गया तो निलंबन खुद ब खुद हट जाएगा। 
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क़मर वहीद नक़वी
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