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अनुच्छेद 35 'ए' हटने से होगा कश्मीर का आर्थिक विकास?

क्या जम्मू-कश्मीर को मिला विशेष दर्जा ख़त्म कर देने से वहाँ बड़े पैमाने पर निवेश होगा और तेज़ी से आर्थिक विकास होगा? क्या अनुच्छेद 35 'ए' हटा लेने के बाद दूसरे राज्यों और विदेशों से पूंजी निवेश कश्मीर में होगा? क्या बड़े निवेश के बाद रोज़गार के मौकों में ज़बरदस्त इजाफ़ा होगा? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि यह कहा जा रहा है कि बाहर के लोगों को जम्मू-कश्मीर में अचल जायदाद ख़रीदने की छूट मिलेगी तो वे वहाँ ज़मीन खरीदेंगे, उद्योग धंधे लगाएंगे। बाहर के लोग वहाँ जाकर बसेंगे तो सस्ता श्रम मिलेगा और राज्य आर्थिक प्रगति की राह पर चल पड़ेगा। क्या सचमुच?
इसमें संदेह की बहुत गुंजाइश है। निवेश वहीं हो सकता है जहाँ शांति हो, स्थिरता हो, कल कारखाना चलाने वाले को जान माल का ख़तरा न हो। इसके अलावा आर्थिक विकास के लिए ऐसा वातावरण चाहिए जिसमें माँग और खपत बढ़े, लोगों की क्रय क्षमता बढ़े।
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कश्मीरी अर्थव्यवस्था 

जम्मू-कश्मीर की आर्थिक स्थिति का सबसे बड़ा और मजबूत कारण पर्यटन है। इसके अलावा वहाँ लकड़ी का कारोबार है। वहाँ चाय उद्योग पर काम किया जा सकता है, जो अब तक उपेक्षित पड़ा है। इसे हम 'टूअरिज़्म, टिंबर एंड टी' यानी 'थ्री टी' कह सकते हैं। लेकिन यदि घाटी में स्थिति शांतिपूर्ण नहीं हुई, आतंकवादी हमले नहीं रुके या हड़तालें होती रहीं, पथराव होते रहे तो पर्यटन का क्या हाल होगा, यह सवाल पूछा जा सकता है। 
इसे एक ताज़ा उदाहरण से समझा जा सकता है।  इस साल अप्रैल से घाटी में स्थिति सुधरने लगी। वहाँ उस महीने 60,844, मई में 1,16,572 और जून में 2 लाख पर्यटक गए। जुलाई में इसे बढ़ कर 3 लाख होने की संभावना थी, यदि इसमें अमरनाथ यात्रा के पर्यटकों को जोड़ लिया जाए तो अगस्त तक यह तादाद 7-8 लाख हो सकती थी। लेकिन अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती हुई और उसके बाद सभी सैलानियों को चले जाने को कहा गया। आज वहाँ सन्नाटा पसरा है।
जब पुलवामा हमला हुआ तो भी सैलानी वहाँ से निकल गए, इसी तरह जब कश्मीर में पथराव की वारदात होती थी तो सैलानियों की तादाद कम हो जाती थी।
सवाल यह है कि यदि कश्मीर में अशांति बरक़रार रही तो पर्यटन उद्योग में निवेश का क्या फ़ायदा? सैलानी तो जाएंगे नहीं?
पिछली उमर अब्दुल्ला सरकार को इस मामले में सबसे ठीक माना जाता था. क्योंकि उस समय हर महीने औसतन 5 लाख सैलानी कश्मीर जाते थे। हँसी खुशी का माहौल था, रोज़गार के मौके बन रहे थे, राज्य में समृद्धि बढ़ रही थी। 
जहाँ तक रोज़गार की बात है, फ़िलहाल जम्मू-कश्मीर की स्थिति बेहद बुरी है। सेंटर फॉर मॉनीटरिंग इंडियन इकॉनमी यानी सीएमआईई के मुताबिक़, जून 2019 में जम्मू-कश्मीर में सबसे ज़्यादा 15 प्रतिशत बेरोज़गारी थी।

निवेश में गिरावट

जम्मू-कश्मीर में वित्तीय वर्ष 2017-18 की तुलना में वित्तीय वर्ष 2018-19 के दौरान निवेश में 19 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। राज्य में निवेश में लगातार चार साल कमी होती रही। हालाँकि यह पूरे देश में ही हुआ है, कश्मीर इसका अपवाद नहीं रहा। सवाल यह है कि क्या अब राज्य में निवेश बढ़ेगा? कॉरपोरेट जगत ने मोटे तौर पर अनुच्छेद 370 में संशोधन का स्वागत किया है। पर वह चौकन्ना भी है। उसका मानना है असल मामला है घाटी में शांति का। जब तक वहाँ शांति स्थापित नहीं होती, न निवेश होगा न आर्थिक विकास।  

अनुच्छेद 370 हटा तो राज्य में निवेश हो सकता है। पर सिर्फ़ इससे निवेश बढ़े, रोज़गार के मौके बनें और आर्थिक विकास हो, यह ज़रूरी नहीं। इसके लिए उचित माहौल ज़रूरी है।


हर्ष गोयनका, आरीपीजी समूह के प्रमुख

उन्होंने कहा कि उनके पिता रमा प्रसाद गोयनका ने कश्मीर में दो कारखाने लगाए थे, पर आतंकवाद के कारण वे बंद कर देने पड़े। गोयनका के कहने का मतलब साफ़ है, आतंकवाद पर रोक लगने से ही उद्योग को बढ़ावा मिल सकता है। इसके अलावा दूसरे उद्योगपतियों ने भी इस कश्मीर पर केंद्र के इस पहल का स्वागत किया है। लेकिन सबने सावधानी बरतते हुए यह कहा है कि निवेश के लिए यह ज़रूर है कि कश्मीर में आतंकवाद ख़त्म हो और स्थिति सामान्य बने। 
पर्यवेक्षकों का कहना है कि निवेश आकर्षित करने के लिए यह ज़रूरी है कि निवेशकों को यह लगे कि वहाँ निवेश तो सुरक्षित है ही, मुनाफ़ा भी होगा। इसके लिए अच्छा माहौल होना चाहिए। इसकी पहली शर्त होगी कि कश्मीर में आतंकवाद बिल्कुल बंद हो जाए, किसी तरह की हिंसा न हो। सारी बात यहीं रुक जाती है। यदि सरकार आतंकवादी वारदात रोकने में नाकाम रही, पथराव, प्रदर्शन और हड़ताल होते रहे तो निवेशक नहीं जाएंगे। अनुच्छेद 370 कमज़ोर करने या अनुच्छेद 35 ख़त्म करने से क्या  आतंकवाादी वारदात रुक जाएगी, सारा मामला यहीं रुका हुआ है। 
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क़मर वहीद नक़वी
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