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20 से ज़्यादा देशों में तीन तलाक़ पर प्रतिबंध तो भारत में विरोध क्यों?

भारत में भले ही एक साथ तीन तलाक़ के ख़िलाफ़ विधेयक पर हंगामा मचा है, लेकिन दुनिया के कई देशों में इस पर पूरी तरह प्रतिबंध है। दुनिया के दूसरे कोने की बात छोड़िए, भारत के पड़ोसी पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका उन देशों में से हैं, जिन्होंने तलाक़ के लिए मुसलिमों में प्रचलित एक साथ ‘तीन तलाक़’ बोलने की प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया है। दुनिया के 20 से ज़्यादा देशों में तीन तलाक़ पर प्रतिबंध लगा है। यहाँ सवाल खड़ा होता है कि भारत में क़ानून के कुछ प्रावधानों को लेकर मुसलमानों को ही आपत्ति है, लेकिन दुनिया के उन देशों में क्यों आपत्ति नहीं हैं जिन्होंने तीन तलाक़ को हटा दिया है? भारत में सबसे ज़्यादा इस बात पर आपत्ति है कि एक साथ तीन तलाक़ पर संबंधित व्यक्ति को तीन साल की सजा का प्रावधान है। तो क्या हैं उन देशों में तीन तलाक़ पर क़ानून और क्या हैं उनमें प्रावधान कि उसका विरोध नहीं है?

पाकिस्तान और बांग्लादेश में जो व्यक्ति अपनी पत्नी को तलाक़ देना चाहता है उसे पहले केंद्रीय परिषद को ऐसा करने की लिखित सूचना देनी होती है। उसे अपनी पत्नी को उसकी एक प्रति भी देनी होती है। फिर 'मध्यस्थता परिषद' दोनों में सुलह कराने की कोशिश भी करती है।
बता दें कि पाकिस्तान में तीन तलाक़ को तब समाप्त कर दिया गया था जब उसने 1961 में मुसलिम परिवार क़ानून अध्यादेश जारी किया था। लेकिन पाकिस्तान में भी इस पर क़ानून बनाना इतना आसान नहीं था।

पाकिस्तान में ऐसे बना क़ानून

पाकिस्तान में एक विवाद के कारण तीन तलाक़ पर क़ानून की पहल की गई थी। 1955 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मुहम्मद अली बोगरा ने अपनी पहली पत्नी को तलाक़ दिए बिना अपने सचिव से शादी कर ली थी। इसका ऑल पाकिस्तान वीमेन एसोसिएशन ने विरोध किया, जिससे सरकार को विवाह और परिवार क़ानून पर सात-सदस्यीय आयोग गठित करना पड़ा। आयोग ने 1956 में सिफ़ारिश की कि एक साथ में तीन तलाक़ बोलने को एक तलाक़ के रूप में गिना जाए। तलाक़ को मान्य होने के लिए पति लगातार तीन महीने में एक-एक बार तलाक़ बोले, और वह अपनी पत्नी को तब तक तलाक़ नहीं दे सकता जब तक कि वह एक वैवाहिक और पारिवारिक अदालत से इस संबंध में आदेश को हासिल नहीं कर ले। इस संबंध में पाकिस्तानी सरकार ने 1961 में मुसलिम परिवार क़ानून अध्यादेश जारी किया। 

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पाकिस्तान में क्या हैं प्रावधान

किसी भी व्यक्ति को ‘किसी भी रूप में तलाक़’ बोलने के बाद, केंद्रीय परिषद के अध्यक्ष (एक निर्वाचित स्थानीय निकाय) को इसके बारे में सूचित करने और उसकी पत्नी को एक प्रति देने के लिए नोटिस देना होगा। ऐसा नहीं करने पर एक साल तक की सजा या 5,000 रुपये का जुर्माना हो सकता है।

तलाक़ तब तक प्रभावी नहीं होगी, जब तक कि उस व्यक्ति द्वारा चेयरमैन को नोटिस दिए जाने के 90 दिन पूरे नहीं होते हैं। नोटिस प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर चेयरमैन को पति-पत्नी को मिलाने के लिए एक मध्यस्थता परिषद का गठन करना होता है। यदि पत्नी गर्भवती है तो 90 दिनों की समाप्ति या गर्भधारण के बाद तक, जो भी बाद में हो, तक तलाक़ प्रभावी नहीं होगी।

बांग्लादेश में भी पाकिस्तान जैसा क़ानून

जब 1971 में बांग्लादेश बना तो इस नए देश को विवाह और तलाक़ के क़ानून विरासत में मिले। नतीजतन, बांग्लादेश में भी तीन तलाक़ समाप्त हो गया है। इससे जुड़े मामलों पर फ़ैसले पाकिस्तान की तरह ही होते हैं। यानी केंद्रीय परिषद के अध्यक्ष को नोटिस देने में असफल रहने पर तलाक़ अपने आप रद्द हो जाती है। दुनिया के उन देशों में भी मामूली बदलाव के साथ क़ानून क़रीब-क़रीब एक समान ही हैं जहाँ तीन तलाक़ पर प्रतिबंध है।

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कई देशों में एक साथ तीन तलाक़ अवैध

अफ़ग़ानिस्तान में एक साथ तीन बार तलाक़ बोलने को अमान्य माना जाता है। श्रीलंका के विवाह और तलाक़ (मुसलिम) अधिनियम 1951 (2006 में संशोधित) ने तीन तलाक़ पर प्रतिबंध लगा दिया।

अन्य देश जहाँ एक साथ तीन तलाक़ पर प्रतिबंध है, वे हैं- तुर्की, साइप्रस, ट्यूनीशिया, अल्जीरिया, मलेशिया, जॉर्डन, मिस्र, ईरान, इराक़, ब्रुनेई, संयुक्त अरब अमीरात, इंडोनेशिया, लीबिया, सूडान, लेबनान, सऊदी अरब, मोरक्को और कुवैत।

बता दें कि इन देशों में ऐसे क़ानून के मद्देनज़र भारत में भी एक साथ तीन तलाक़ को ख़त्म करने की माँग उठती रही है। बीजेपी इस पर सख्त क़ानून की पैरवी करती रही है। इसी बीच भारत के सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल मुसलिम समुदाय में कुछ लोगों द्वारा प्रचलित तत्काल तीन तलाक़ या 'तलाक़-ए-बिद्दत' पर प्रतिबंध लगाते हुए कहा था कि यह ‘असंवैधानिक’ है।

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क़मर वहीद नक़वी
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