उमर खालिद, जिन्हें मार्च 2020 में दिल्ली पुलिस की चार्जशीट में "देशद्रोह का खलीफा" बताया गया था, ने इस सप्ताह आतंकवाद के आरोप में जेल में अपने पांचवें वर्ष में प्रवेश किया। 37 साल के पूर्व जेएनयू छात्र के खिलाफ 40 पेज की चार्जशीट की पहली लाइन शुरू होती है- “देशद्रोह के एक खलीफा की इस जांच से यह स्थापित हो गया है कि आरोपी उमर खालिद ने 2016 से कितनी दूर तक यह यात्रा की है…।” खालिद के खिलाफ इस मामले के मूल में यह है कि "आतंकवादी कृत्य" क्या है, लेकिन इसे तय कौन कर रहा है, उस पर गौर कीजिए।
पिछले पांच वर्षों में, अदालतों ने - दो बार ट्रायल कोर्ट द्वारा (मार्च 2022, मई 2024 में) और एक बार दिल्ली हाईकोर्ट (जुलाई 2024) ने संकेत दिया कि अदालतों को इसकी मेरिट में जाए बिना सरकार जो बता रही है, उस कहानी को स्वीकार करना होगा। बेशक कम से कम जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करते समय लगता होगा कि केस में दम नहीं है। सरकार आखिर सरकार है।