पहले जहाँ विशेषज्ञ कह रहे थे कि सुपर रिच यानी सबसे ज़्यादा धनाढ्य लोगों पर सरचार्ज लगाने का ग़लत असर पड़ेगा, वहीं अब केंद्र सरकार के भीतर ही इसके नकारात्मक असर को लेकर शंकाएँ जताई जा रही हैं। केंद्र सरकार में नीति निर्धारक ही यह मानते हैं कि सुपर रिच पर ज़्यादा सरचार्ज लगाने वाले इस बजट प्रस्ताव से नए निवेशक हतोत्साहित होंगे। इसका एक असर यह भी होगा कि भारत से ऐसे धनाढ्य लोगों के विदेश में बसने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलेगा। इसका साफ़ मतलब यह हुआ कि सरकार को इस सरचार्ज से जितनी आमदनी होगी उससे कहीं ज़्यादा निवेश दूर भागने से नुक़सान होगा। यह सरकार के इस दावे के उलट भी होगा जिसमें देश के विकास के लिए निजी भागीदारी की वकालत की गई है। क्योंकि यदि सुपर रिच पैसे का निवेश करने देश से बाहर जाएँगे और निवेशक हतोत्साहित होंगे तो फिर निजी भागीदारी तो होगी ही नहीं। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या यह बजट विरोधाभासी है जहाँ यह निजी भागीदारी को प्रमुखता देने की बात करता है वहीं उन्हें हतोत्साहित भी करता है?