साल 2022 की दो बड़ी घटनाएँ हैं जिनके आईने में हिंदी या विश्व साहित्य को देखा जा सकता है- गीतांजलि श्री को मिला बुकर और सलमान रुश्दी पर हुआ हमला। पुरस्कार और हमले की इन दो अंतर्विरोधी घटनाओं को मिलाकर देखेंगे तो हमारे समय में साहित्य की संभावनाओं और चुनौतियों- दोनों का कुछ अंदाज़ा मिलेगा। पहली बार किसी हिंदी लेखक को मिला अंतरराष्ट्रीय बुकर सम्मान बताता है कि मूलतः यूरोप केंद्रित सम्मान-दृष्टि अब सुदूर एशियाई-अफ़्रीकी देशों की ओर भी पड़ रही है। हालांकि इसमें यह तथ्य भी शामिल है कि ये देश अब इतने सुदूर नहीं रह गए हैं। क्या इत्तिफ़ाक़ है कि इस साल मैन बुकर भी एक दक्षिण एशियाई लेखक के खाते में गया- श्रीलंका के लेखक शेहान करुणातिलका को उनकी किताब ‘द सेवेन मून्स ऑफ माली अल्मीदा’ पर यह सम्मान मिला।
2022 का साहित्य: चाकू भी चला, कलम भी चली; समारोह भी हुए बहस भी चली
- साहित्य
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- 31 Dec, 2022

साहित्य के लिए 2022 कैसा रहा? सुर्खियों में साहित्यकार गीतांजलिश्री रहीं तो सलमान रुश्दी भी रहे। कोरोना काल के बाद साहित्य की दुनिया में फिर से क्या उस तरह की हलचल हुई जैसी कोरोना से पहले हुआ करती थी?
गीतांजलि श्री को बुकर निश्चय ही भारतीय संदर्भ में इस वर्ष की सबसे बड़ी साहित्यिक परिघटना है। इससे कम से कम दो तीन बातें साफ़ हुई हैं। पहली बात तो यह कि भारतीय या एशियाई भाषाओं में भी ऐसा लेखन हो रहा है जिसे वैश्विक मान्यता मिल सकती है। दूसरी बात यह कि भारतीय लेखन में अचानक अनुवाद को एक नई तरह की हैसियत हासिल हुई है। पहली बार लेखक अनुवादकों की तलाश में हैं। (हालांकि अनुवादकों के पैसे अब भी न्यूनतम मज़दूरी से भी कम हैं।) डेजी रॉकवेल किसी दूसरे लेखक से कम नहीं जानी जातीं। तीसरी और ज़्यादा महत्वपूर्ण बात गीतांजलि श्री को मिले पुरस्कार के बाद उनके लेखन और उपन्यास पर शुरू हुई चर्चा रही। जिन लोगों ने बहुत प्रमुदित भाव से एक बुकर विभूषित लेखिका का उपन्यास खरीदा, उन्होंने पाया कि यह तो वैसा दिलचस्प उपन्यास नहीं है जैसी फिल्में हुआ करती हैं, कि इसमें उनका मन नहीं लग रहा है, इसकी हिंदी भी उन्हें चुभ रही है और कई बार कथानक उनके हाथ से छूट रहा है।