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सुरों में रहेंगे राजन मिश्र!

हमेशा हहाकर मिलना। वही मस्ती, वही आत्मीयता। दिल्ली में बनारसियों को इक्कठा करने की कोशिश करने वाला केन्द्र अब नहीं रहा। बनारस एक नागरिकता है, जिसका संबंध जन्म से नही, बल्कि डूब जाने से है। यही डूब कर गाना राजन जी की शैली थी।
हेमंत शर्मा

क्या कहूँ? नहीं कह पा रहा हूँ। दिमाग सुन्न है। 

बनारसी गायकी का एक नक्षत्र टूटा गया। राजन जी उसी अनन्त में चले गए जहॉं से संगीत के सात सुर निकले थे। जोड़ी टूट गयी। अब साजन जी का स्वर अधूरा रह जायगा। राजन साजन मिश्र की इस जोड़ी ने बनारस के कबीर चौरा से निकल कर दुनिया में ख़्याल गायकी का परचम लहराया।

बड़े राम दास, महादेव मिश्र, हनुमान प्रसाद मिश्र और राजन साजन मिश्र की पारिवारिक परम्परा चार सौ साल पुरानी है। राजन जी को संगीत की शिक्षा उनके दादा पंडित बड़े राम दास और पिता पंडित हनुमान मिश्रा ने दी थी। 

रससिद्धता उन्होंने पिता हनुमान प्रसाद मिश्र से ली। हलॉकि वह सांरगी वादक थे। चाचा पं गोपाल मिश्र इन्हें दिल्ली ले आए। घरानेदार  बंदिशों और ख़्याल गायन में आपकी जोड़ी सबसे लोकप्रिय थी

ठुमरी न गाकर केवल ख़्याल, टप्पा, ध्रुपद और भजन गाकर राजन जी ने एक विशिष्ट शैली विकसित की। समूची दुनिया में उनकी संगीत यात्रा भैरव से भैरवी तक असमय रुक गयी।

राजन जी से मेरा रिश्ता महज श्रोता और गायक का नहीं था। वह मेरे बड़े भाई के साथ पढ़े थे, पिताजी के विद्यार्थी थे। इसलिए पारिवारिक नाता था। हम एक ही मुहल्ले में रहते थे। हमारे और उनके घरों के बीच सड़क थी। पान खाने के लिये उन्हें इस पार आना पड़ता और संगीत सुनने हमें उस पार जाना पड़ता।

कबीर चौरा सूना

बनारस का कबीर चौरा संगीत का न्यूक्लियस था। पंडित कंठे महाराज से लेकर किशन महाराज और गोदई महाराज तक तबले की समृद्ध परंपरा यहीं विराजती थी। गिरिजा देवी की ठुमरी हो या सितारा देवी और गोपीकृष्ण के नृत्य की ताल। बड़े राम दास हनुमान प्रसाद मिश्र या फिर पंडित राम सहाय राजन-साजन मिश्र का गायन। क्या मुहल्ला था!

कलाओं की इस भूमि में विद्याधरी, सिद्धेश्वरी और हुस्ना बाई का आज तक कोई तोड़ नही। मोइजुद्दीन खान जैसा गायक। छप्पन छुरी खाने वाली जानकी बाई यही की थीं। कुछ ही दूरी पर बिस्मिल्ला खाँ का सराय हडहा।सबकी जड़ें इसी मुहल्ले में थी। एक एक कर सब चले गए। कबीर चौरा सूना हो गया। 

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वेंटिलेटर नहीं मिला

तीन रोज़ पहले राजन जी को कोरोना हुआ। हालत बिगड़ी तो घर के पास स्टीफ़ेन अस्पताल में दाखिल हुए। उनके ऑक्सीजन का लेवल नीचे जा रहा था। पर अस्पताल में वेंटिलेटर नहीं था। इसलिए कल सुबह हार्ट ने कुछ क्षणों के लिए काम करना बंद किया। साजन जी परेशान हो सब तरफ़ गुहार लगा रहे थे। पर कोई सफलता नहीं।

कई संगीत रसिकों और मित्रों ने ट्वीट किए। चिन्ता जताई। मुझे पता चला तो साजन जी से मैंने भी बात की। उन्होने बताया कि संबित पात्रा ने गंगाराम में इन्तजाम किया है। आप वाले साँसद संजय सिंह ने एम्बुलेंस भिजवाई है। आते ही जाऊगाँ, उधर आक्सीजन के अभाव में दिल की धकधक मद्धिम पड़ रही थी।

देर हो चुकी थी तब तक। द्रुत और विलम्बित के इस साधक की साँस सम पर ठहर गयी। वेंटिलेटर तक बिना पहुँचे राजन जी चले गए।
हमेशा हहाकर मिलना। वही मस्ती, वही आत्मीयता। दिल्ली में बनारसियों को इक्कठा करने की कोशिश करने वाला केन्द्र अब नहीं रहा। बनारस एक नागरिकता है, जिसका संबंध जन्म से नही, बल्कि डूब जाने से है। यही डूब कर गाना राजन जी की शैली थी। जो बनारस में डूब गया, वो बनारसी हो गया। बनारसीपन जन्म से नहीं होता, पर जन्म जन्म साथ रहता है। आप बनारस की तरह जिन्दा रहेंगे राजन जी।
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