असम में एनआरसी प्रक्रिया में करोड़ों लोग परेशान हुए, फिर भी इसे पूरे देश में लागू करने की बात क्यों की जा रही है? असम की दिक्कतों से सीख नहीं ली जा रही है या फिर जानबूझकर चुनावी फ़ायदे के लिए एक त्रासदी पैदा की जा रही है?
पश्चिम बंगाल जीतने के लिए पूरे देश पर एनआरसी की तलवार?
- विचार
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- 21 Dec, 2019

राजनैतिक विश्लेषक संदेह व्यक्त करते हैं कि पूरे देश में एनआरसी लागू करने की सारी क़वायद बंगाल में ममता बनर्जी को विधानसभा चुनाव में परास्त करने के लिए किए गये मास्टर प्लान का हिस्सा है, यदि यह सच है तो यह बहुत ही नुक़सानदेह राजनैतिक सौदा है जिसकी क़ीमत चुकाने की हर कोशिश देशव्यापी तौर पर रक्तरंजित हो सकती है!
संसद में नागरिकता क़ानून में हुए संशोधन के बाद देश भर में आंदोलनों की लहर आ गई है। दरअसल, हुआ यूँ कि गृह मंत्री अमित शाह के ज़ोर देकर यह बोलने के बाद कि पहले वह नागरिकता क़ानून में संशोधन करेंगे और उसके बाद पूरे देश में NRC लागू करेंगे यह विवाद बढ़ा।
अब तक देश भर में कम से कम 18 लोग मारे जा चुके हैं। सैकड़ों लोग गिरफ़्तार हैं और करोड़ों की संपत्ति का नुक़सान हुआ है। देश के कम से कम सौ शहरों में अब तक बड़े प्रदर्शन हो चुके हैं जिनमें तमाम में हिंसा हुई है। सरकार ने घबराहट के सबूत दिये हैं पर वह मामले को फ़िलहाल ठंडा करने की कोशिश करती दिखाई दे रही है।
1979 में असम में बांग्लादेशी घुसपैठियों के ख़िलाफ़ आंदोलन शुरू हुआ था। आंदोलनकारी लोगों ने अपना एक ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन नामक संगठन बनाया था जिसकी अगुवाई छात्र कर रहे थे। इस आंदोलन का इतना असर हुआ कि 1985 में असम में आन्दोलनकारियों की सरकार बन गई! सरकार तो बन गई लेकिन सरकार बांग्लादेशी घुसपैठियों को कैसे बाहर करेगी, इसका फ़ॉर्मूला न बन सका और इसके बाद हुए विधानसभा चुनावों में छात्रों की यह कोशिश चुनाव हार गई। सरकार फिर कांग्रेस की बनी लेकिन वह भी उस मुद्दे को हल न कर सकी। हालाँकि उसके पहले राजीव गाँधी के नेतृत्व में असम के आंदोलनकारी लोगों के साथ एक समझौता ज़रूर हो गया था। इसी समझौते से एनआरसी निकला।